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________________ १४६ श्रमण भगवान् महावीर ढंक भगवान् महावीर का भक्त श्रावक था । जमालि के मतभेद से वह पहले ही परिचित था । प्रियदर्शना जमालि का मत माननेवाली है यह भी उसे मालूम था । जमालि तथा उसके अनुयायी किसी तरह समझें और भगवान् के साथ जो विरोध खड़ा किया है उसे मिटा दें यह ढंक की उत्कट इच्छा थी । इसी विषय को लक्ष्य में रखकर उसने प्रियदर्शना की संघाटी (चादर) पर अग्निकण फेंका । संघाटी जलने लगी जिसे देखकर प्रियदर्शना बोल उठी, 'आर्य ! यह क्या किया, मेरी संघाटी जला दी ?' ढंक ने कहासंघाटी जली नहीं, अभी जल रही है । जलते हुए को 'जला' कहना यह भगवान् महावीर का मत है । तुम्हारा मत जले हुए को 'जला' कहने का है, फिर तुमने जलती संघाटी को 'जली' कैसे कहा ? ___ ढंक की इस युक्ति से प्रियदर्शना समझ गई, बोली-'आर्य ! तूने अच्छा बोध दिया ।' प्रियदर्शना ने उसी समय जमालि का मत छोड़ कर अपने परिवार के साथ भगवान् महावीर के संघ में प्रवेश किया । जमालि के साथ जो साधु रहे थे वे भी धीरे-धीरे उसे छोड़कर महावीर के श्रमण संघ में मिल गये फिर भी जमालि अपने हठाग्रह से पीछे नहीं हटा । जहाँ जाता वहीं अपने मतवाद का प्रचार करता और भगवान् महावीर के विरुद्ध लोगों को बहकाता ।। बहत वर्षों तक श्रमणधर्म पालने के उपरान्त जमालि ने अनशन किया और पंद्रह दिन तक निराहार रह देह छोड़ा और लान्तक देवलोक में किल्बिष जाति का देव हुआ । मेंढिय ग्राम से विहार करते हुए भगवान् मिथिला पहुँचे और वर्षावास मिथिला में ही किया । चातुर्मास्य पूरा होते ही भगवान् ने मिथिला से पश्चिम के जनपदों की तरफ विहार कर दिया ।। २८. अट्ठाईसवाँ वर्ष (वि० पू० ४८५-४८४) भगवान् कोशलभूमि में विचरते हुए पश्चिम की ओर धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे । इसी बीच में इन्द्रभूति गौतम अपने शिष्यगण के साथ आगे निकल कर श्रावस्ती के कोष्ठक चैत्य में जा ठहरे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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