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________________ श्रमण भगवान् महावीर आया । क्यों यह ठीक है ? __ अयंपुल ने हाथ जोड़ कर कहा---जी हाँ, मेरे अभी यहाँ आने का यही प्रयोजन है। "परन्तु यह आम की गुठली नहीं उसकी छाल है...क्या कहा—हल्ला का संस्थान कैसा होता है ? हल्ला का संस्थान बाँस के मूल जैसा होता ह। ...बीन बजा अरे वीरका ! बीन बजा ।' मदिरा के नशे और दाहज्वर की पीड़ा से विकल गोशालक अयंपुल को उत्तर देता हुआ असंबद्ध प्रलाप कर रहा था तो भी श्रद्धालु अयंपुल पर उसका कुछ भी विपरीत प्रभाव नहीं हुआ । वह अपने धर्माचार्य के उत्तर से संतुष्ट होकर तथा अन्य भी कतिपय प्रश्न पूछ कर उनके उत्तरों से आनन्दित होकर अपने घर गया । गोशालक की शक्ति प्रतिक्षण क्षीण हो रही थी इससे, और 'तू स्वयं पित्तज्वर की पीड़ा से सात दिन के भीतर छद्मस्थावस्था में मृत्यु को प्राप्त होगा' इस महावीर की भविष्यवाणी के स्मरण से, गोशालक को निश्चय हो गया कि अब उसकी जीवन-लीला समाप्त होने को है। उसने अपने शिष्यों को पास बुलाकर कहा-भिक्षुओ ! मेरे प्राण-त्याग के बाद मेरे इस शरीर को सुगंधित जल से नहलाना, सुगन्धित काषायवस्त्र से पोंछना और गोशीर्ष चन्दन के रस से विलेपन करना । फिर इसे श्वेत वस्त्र से ढककर हजार पुरुषों से उठाने योग्य पालकी में रखकर श्रावस्ती के मुख्य मुख्य सब चौक बाजारों में फिराना और ऊँचे स्वर से उद्घोषित करना कि 'इस अवसर्पिणी काल के अन्तिम जिन कर्म खपाकर मुक्त हो गये । गोशालक की उक्त आज्ञा को आजीवक स्थविरों ने विनय के साथ सिर पर चढ़ाया 1 गोशालक की बीमारी का सातवाँ दिन था । उसका शरीर काफी कमजोर हो गया था पर विचारशक्ति तबतक लुप्त नहीं हुई थी । वह सोता था पर उसके हृदय में जीवन के भले बुरे प्रसंगों की स्मृति चक्कर काट रही थी । अपना मंखजीवन, महावीर के पीछे पड़ कर उनका शिष्य होना, कई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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