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श्रमण भगवान् महावीर हमारी शास्त्रीय परिभाषा में साढ़े चारसौ योजन लम्बी, आधायोजन चौड़ी और पाँच सौ धनुष्य गहरी नदी का नाम गंगा है ।
७ गंगा=१ महागंगा । ७ महागंगा=१ सादीन गंगा । ७ सादीन गंगा=१ मृत्यु गंगा । ७ मृत्यु गंगा=१ लोहित गंगा । ७ लोहित गंगा-१ आवती गंगा और ७ आवती गंगा=१ परमावती गंगा ।
इस प्रकार एक से दूसरी का सात-सात गुना प्रमाण मानने से अन्तिम परमावती गंगा का प्रमाण एक लाख सत्रह हजार छ: सौ उनचास (११७६४९) गंगाओं के बराबर हुआ ।
इन सब गंगाओं के बालुकापिण्ड में से प्रतिशत वर्ष में एक बालुका कण के निकालने पर जितने समय में संपूर्ण बालुकापिण्ड निकल चुके उतने काल का नाम हमारे शास्त्र में सर:प्रमाण अथवा मानससर कहलाता है ।
ऐसे तीन लाख 'सरों' अथवा 'मानसों' का एक 'महाकल्प' और चौरासी लाख 'महाकल्पों' का एक 'महामानस' होता है ।
जब जीव मोक्षाभिमुख होता है तब अनन्त संयूथ (अनन्त जीव राशि) में से निकलकर पहले वह मानस प्रमाण आयुष्यवाले ऊपर के संयूथ में (देवलोक में) उत्पन्न होता है और वहाँ दिव्य सुख भोगने के बाद पहला मनुष्य जन्म प्राप्त करता है ।
फिर वह मानसप्रमाण आयुष्यवाले मध्यम देव संयूथ में जाता है और वहाँ दिव्य सुख भोगकर दूसरा मनुष्य भव करता है ।
___ इसके बाद वह मानस प्रमाण आयुष्यवाले नीचे के देवसंयूथ में देवगति को प्राप्त होता है और वहाँ से निकलकर तीसरा मनुष्य जन्म ग्रहण करता है।
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