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________________ १२६ श्रमण भगवान् महावीर अन्य श्रमण-निर्ग्रन्थों का तिरस्कार तक कर देता, पर जिस समय की हम बात कर रहे हैं उस समय में ये सब बातें इतिहास बन चुकी थीं । पग पग पर महावीर के तपस्तेज की दुहाई देनेवाला गोशालक अब आजीवक मत का धर्माचार्य था । वह अपने को तीर्थंकर के नाम से प्रख्यात करता हुआ आजीवक मत का प्रचार कर रहा था । इसी अवसर में श्रमण भगवान् महावीर भी विचरते हुए श्रावस्ती के ईशान कोणस्थित कोष्ठक चैत्य में पधारे । आपके मुख्य शिष्य इन्द्रभूति गौतम आपकी आज्ञा ले भिक्षाचर्यार्थ श्रावस्ती में गये । बस्ती में फिरते हुए गौतम ने अनेक स्थानों पर जनप्रवाद सुना—'आजकल श्रावस्ती में दो तीर्थंकर विचर रहे हैं-एक श्रमण भगवान् महावीर और दूसरे मंखलि श्रमण गोशालक ।' गौतम को इस बात से बड़ा आश्चर्य हुआ कि श्रावस्ती में अनेक लोग गोशालक को तीर्थंकर और सर्वज्ञ पुकार रहे हैं । वे भिक्षाभ्रमण से निवृत्त होकर कोष्ठकोद्यान में आये और सभाके समक्ष इस विषय को छेड़ते हुए बोले-भगवन् ! आजकल श्रावस्ती में दो तीर्थंकर होने की चर्चा हो रही है, यह कैसे ? क्या गोशालक सर्वज्ञ और तीर्थंकर है ? इन्द्रभूति गौतम के प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान् महावीर ने कहा--गौतम ! गोशालक के विषय में जो बातें हो रही हैं वे सब मिथ्या हैं । गोशालक जिन, तीर्थंकर कहलाने के योग्य नहीं है । वह जिन शब्द का दुरुपयोग कर रहा है । गौतम ! गोशालक जिन या सर्वज्ञ कुछ भी नहीं है । यह शरवनग्राम के बहुल ब्राह्मण की गोशाला में जन्म लेने से गोशालक और मंखलि नामक मंख का पुत्र होने से मंखलिपुत्र कहलाता है । यह आज से चौबीस वर्ष पहले हमारा धर्मशिष्य होकर हमारे साथ रहता था परन्तु कुछ वर्षों के बाद यह हम से जुदा हो गया और तब से वह स्वच्छन्द विचरता है, स्वच्छन्द ही बोलता है । गौतम को उत्तर देते हुए महावीर ने गोशालक संबन्धी सब हाल सभा के सामने प्रकट कर दिया । सुननेवाले अपने अपने स्थानों की ओर चल दिए । गोशालक उस समय कोष्ठकोद्यान और श्रावस्ती के मध्य-प्रदेश में नगर के बाहर आतापना कर रहा था । उसके पास से जाते हए नगरवासियों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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