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प्रस्तावना
१. प्राक्थन —
प्रस्तुत ग्रन्थ ' श्रमण भगवान् महावीर' के निर्माण का संकल्प हमने आज से बीस वर्ष पहले किया था ।
संवत् १९७६ का हमारा वर्षाचातुर्मास्य पालीताना (काठियावाड) में था । उस समय पंडित बेचरदासजी दोशी ने अपने एक भाषण में देवद्रव्य की अशास्त्रीयता बताई जिससे जैनसंघ में देवद्रव्य की चर्चा चल पड़ी । हमने एक विस्तृत लेख लिख कर पंडितजी को उनकी बातों का उत्तर दिया ।
हमारे लेख ने जैनसमाज में पर्याप्त जागृति उत्पन्न की। कई प्रसिद्ध जैन साधुओं और विद्वानों ने उस लेख की प्रशंसा करने के साथ उसकी पाँच हज़ार कॉपियाँ पुस्तकाकार छपवा कर प्रचार करने का भी अनुरोध किया । ठीक उसी प्रसंग पर कई जैन गृहस्थों ने भगवान् महावीर का जीवनचरित्र लिखने की हमें प्रार्थना की और इसके लिये यथाशक्ति सहायता देने के वचन दिये । हमने यथाशक्य प्रयत्न करने का विश्वास दिलाया और मानसिक संकल्प किया कि जैसे भी होगा श्रमण भगवान् के संबंध में अवश्य लिखा जायगा ।
संवत् १९७८ के पालनपुर के चातुर्मास्य में उक्त संकल्पानुसार भगवान् का जीवन चरित्र लिखना प्रारंभ किया और स्वास्थ्य ठीक न होने पर भी थोड़ा बहुत लिखा ।
पालनपुर से मारवाड़ में आये । हमारे लिये मारवाड़ महान् प्रवृत्तिमय क्षेत्र है । वर्षाकाल के दो तीन महीनों के अतिरिक्त यहाँ हमें साहित्यिक प्रवृत्ति
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