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________________ के लिये समय नहीं मिलता । चातुर्मास्य में भी जबजब इस कार्य को हाथ में लेते तब तब बहुत-सी बातें जानने की आवश्यकता उपस्थित होती । यद्यपि सामग्री की न्यूनता न थी फिर भी कई बार नये ग्रन्थ मँगाने पड़ते । इस प्रकार बहुत सी पुस्तकें मँगानी और पढ़नी पड़ी । संवत् १९८५ के वर्ष में गुजराती भाषा में महावीर-चरित्र तैयार हो गया, पर तब तक हमारे विचारों में खासा परिवर्तन हो चुका था । हमें इस कार्य की प्रेरणा गुजरात से मिली थी और विहार भी तब गुजरात में कर रहे थे अतः ग्रन्थ गुजराती भाषा में बनाना था । परंतु बाद में तुरन्त मारवाड़ आना हुआ और संयोग बदल गये । दूसरा एक और भी कारण था । हमने जो गुजराती में चरित्र लिखा था उसकी पद्धति प्राचीन चरित्रों से अधिक मिलती थी परन्तु बाद में यह पद्धति हमें ठीक नहीं अँची, क्योंकि इस पद्धति के चरित्र अनेक बन चुके थे जिनका जैन समाज ने उचित आदर नहीं किया था । इसलिये हमने उस गुजराती चरित्र को बिलकुल रद्द करके नये सिरे से हिन्दी में लिखना आरंभ किया जो वर्षाकाल के दिनों में थोड़ा-थोड़ा चलता और कभी-कभी वर्षाकाल में भी अन्यान्य तात्कालिक कार्यों के उपस्थित होने पर बन्द रहता । इस प्रकार अति मन्दगति से चलता हुआ हमारा काम अब जाकर पूरा हुआ । २. सामग्री अवकाशाभाव के अतिरिक्त एक ओर भी विलंब का कारण था और वह था मौलिक साधनों की अव्यवस्थितता । ___ भगवान् महावीर के जीवन-चरित्र की मौलिक सामग्री का निर्देश करते समय हम सर्वप्रथम आचारांग, कल्पसूत्र और आवश्यकनियुक्ति, भाष्य, चूणि तथा टीका पर दृष्टिपात करेंगे । क्योंकि मौलिक रूप से इन्हीं सूत्रों में श्रमण भगवान् के जीवन-चरित्र संबन्धी वृत्तान्त उपलब्ध होते हैं । उक्त सूत्रों के अतिरिक्त आचार्य श्री नेमिचन्द्र, गुणचन्द्र तथा हेमचन्द्रसूरिकृत मध्यकालीन 'महावीर-चरितों' में भी भगवान् के जीवन-चरित्र के 'कुछ अंश' संगृहीत हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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