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श्रमण भगवान् महावीर कालियपुत्र स्थविर-आर्यो ! प्राथमिक तप से देवलोक में देव उत्पन्न होते हैं ।
मेहिल स्थविर-आर्यो ! प्राथमिक संयम से देवलोक में देव उत्पन्न होते हैं ।
आनन्दरक्षित स्थविर-आर्यो ! कार्मिकता से देवलोक में देव उत्पन्न होते हैं।
__काश्यप स्थविर-आर्यो ! संगिकता (आसक्ति) से देवलोक में देव उत्पन्न होते हैं । पूर्वतप, पूर्वसंयम, कार्मिकता और संगिकता से देवलोक में देव उत्पन्न होते हैं ।
स्थविरों के उत्तर सुनकर श्रमणोपासक बहुत प्रसन्न हुए और स्थविरों को वन्दन कर अपने-अपने स्थान पर गये । बाद में स्थविर भी वहाँ से विहार कर अन्यत्र चले गये ।
उसी समय इन्द्रभूति गौतम भगवान् की आज्ञा ले राजगृह में भिक्षाचार्य के लिए निकले, ऊँच, नीच, मध्यम-कुलों में भिक्षाटन करते हुए उन्होंने पूर्वोक्त पार्खापत्य स्थविरों से तुंगीया के श्रमणोपासकों द्वारा पूछे गये प्रश्नों और स्थविरों की तरफ से दिये गये उनके उत्तरों के विषय में लोकचर्चा सुनी । इस पर गौतम को कुछ संदेह हुआ और स्थविरों के उत्तर ठीक हैं या नहीं इसका निर्णय करने का विचार कर वे भगवान् के पास गये । भिक्षाचर्या की आलोचना करने के बाद उन्होंने पूछा-भगवन ! मैंने राजगह में स्थविरों के प्रश्नोत्तर संबन्धी जो चर्चा सुनी है क्या वह ठीक है ? स्थविरों ने जो उत्तर दिये क्या वे ठीक हैं ? ऐसे उत्तर देने में वे समर्थ हो सकते हैं ?
___ भगवान् ने कहा-गौतम ! तुंगीयानिवासी श्रमणोपासकों के प्रश्नों के पार्खापत्य स्थविरों ने जो उत्तर दिये हैं वे यथार्थ हैं। उन्होंने जो कुछ कहा सत्य है । हे गौतम ! इस विषय में मेरा भी यही सिद्धान्त है कि पूर्वतप तथा पूर्वसंयम से देव देवलोक में उत्पन्न होते हैं ।
१. (भ० श० २, नु० ५, प० १३८-१४०)
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