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________________ १२० श्रमण भगवान् महावीर हाथ लगे उसे लेकर गृहस्वामी बाहर निकल जाता है । हे भगवन् ! इस जलते हुए संसार दावानल में 'आत्मा' ही मेरा सर्वस्व है । इसको बचाने के लिये इस दावानल तुल्य संसार से दूर होना ही मेरे लिये हितकर है।' यह कहकर स्कन्दक ने महावीर के पास श्रमणधर्म की दीक्षा ली । श्रमण भगवान् ने उसे निर्ग्रन्थ मार्ग में प्रविष्ट कर तत्संबन्धी शिक्षा और सामाचारी से परिचय कराया । भगवान् की सेवा में रहते, श्रमण-धर्म की आराधना करते और जिन प्रवचन का अभ्यास करते हुए अनगार स्कन्दक ने एकादशाङ्गी का अध्ययन किया । कात्यायन स्कन्दक पहले ही से तपस्वी थे । भगवान् महावीर के पास दीक्षित होने के बाद वे और भी विशिष्ट तपस्वी हो गये, भिक्षुप्रतिमा, गुणरत्नसंवत्सरतप आदि विविध तप और विशिष्ट साधनाओं से कर्मक्षय करने में स्कन्दक ने शक्ति भर प्रयत्न किया । और पूरे १२ वर्ष तक श्रामण्य पालने के उपरान्त स्कन्दक अनगार ने अन्त में विपुलाचल पर्वत पर जाकर अनशन कर दिया और समाधिपूर्वक देह छोड़ 'अच्युत कल्प' नामक स्वर्ग में देवपद प्राप्त किया। वहाँ से महाविदेह में मनुष्य जन्म पाकर पुनः धर्म की आराधना से निर्वाणपद प्राप्त करेंगे । छत्रपलास चैत्य से विहार कर भगवान् श्रावस्ती के कोष्ठक चैत्य में पधारे । भगवान् के आगमन पर श्रावस्ती की प्रजा आपके दर्शन वन्दन के लिये उमड़ पड़ी । श्रमण भगवान् की धर्मदेशना से अनेक भाविक मनुष्यों को धर्म प्राप्ति हुई, अनेक गृहस्थों ने गृहस्थधर्म के व्रत लिये, जिनमें गाथापति नन्दिनी पिता, उसकी स्त्री अश्विनी, गाथापति सालिहीपिता और उसकी स्त्री फाल्गुनी के नाम उल्लेखनीय हैं । श्रावस्ती से भगवान् विदेह भूमि की तरफ पधारे और वाणिज्यग्राम में जाकर वर्षावास किया । १. भग० श० २, उ० १, प० ११२-१२८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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