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श्रमण भगवान् महावीर लघु और अगुरु-लघु पर्यायात्मक है, अनन्त पर्यायात्मक होने से भावलोक 'अनन्त' है । जीव भी द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव स्वरूप से विचारणीय है । द्रव्यस्वरूप से जीव-द्रव्य एक होने से सान्त है । क्षेत्रस्वरूप से जीव असंख्यातप्रदेशिक और असंख्य-आकाशप्रदेश-व्यापी है, तथापि वह सान्त है । कालस्वरूप से जीव अनन्त है, क्योंकि यह पहले था, अब है, और भविष्य में रहेगा, त्रिकालवर्ती होने से कालापेक्षया जीव नित्य (शाश्वत) है । भावस्वरूप से भी जीव अनन्त है । ज्ञान, दर्शन और चारित्र के अनन्तानन्त पर्यायों से भरपूर और अनन्त अगुरुलगु पर्याय स्वरूप होने से भाव से जीव अनन्त है ।
स्कन्दक ! इसी प्रकार सिद्धि भी द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव इन चार प्रकारों से विचारणीय है । द्रव्यस्वरूप से सिद्धि एक होने से सान्त है। क्षेत्रस्वरूप से सिद्धि पैंतालीस लाख योजन लंबी-चौड़ी और एक करोड़ बयालीस लाख तीस हजार दो सौ योजन और कुछ कम दो कोस की परिधिवाली है । कालस्वरूप से सिद्धि अनन्त है, इसका पहले कभी अभाव नहीं था, वर्तमान में अभाव नहीं है और भविष्य में कभी अभाव नहीं होगा । यह शाश्वत है और रहेगी । भावस्वरूप से भी अनन्त पर्यायात्मक होने से सिद्धि अनन्त है।
सिद्ध भी द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के भेद से चार प्रकार के हैं । द्रव्यापेक्षया सिद्ध एक होने से सान्त है । क्षेत्रविचार से सिद्ध असंख्यप्रदेशात्मक तथा असंख्याकाशप्रदेशव्यापी होने पर भी सान्त है । कालस्वरूप से सिद्ध की आदि होने पर भी उसका अन्त नहीं होता अतः वह अनन्त है । भावस्वरूप से सिद्ध अनन्त है, क्योंकि वह अनन्त ज्ञान, दर्शन, चारित्र और अगुरु-लघु पर्यायमय होता है ।
स्कन्दक ! मरण मैंने दो तरह के कहे हैं---एक बालमरण और दूसरा पंडित-मरण । बालमरण के बारह भेद हैं-१. भूख की पीड़ा से तड़प कर, २. विषय-भोग की अप्राप्ति से निराश होकर, ३. जीवन भर में किए हुए पापों को हृदय में गुप्त रखकर, ४, वर्तमान जीवन की विशेष सफलता न कर फिर इसी गति का आयुष्य बाँध कर, ५. पर्वत से गिर कर, ६. वृक्ष से गिर
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