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तीर्थंकर - जीवन
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गौतम —— महानुभव स्कन्दक ! मेरे धर्माचार्य भगवान् महावीर ऐसे ज्ञानी और तपस्वी हैं जो भूत-भविष्यत् और वर्तमान तीनों काल के सब भावों को जानते और देखते हैं । इन्हीं महापुरुष के कहने से मैं तुम्हारे दिल की गुप्त बात जान सका हूँ ।
स्कन्दक —— अच्छा, तब चलिये गौतम, तुम्हारे धर्माचार्य श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन कर लूँ ।
गौतम - बहुत अच्छा,
चलिये I
इन्द्रभूति, गौतम और स्कन्दक दोनों भगवान् महावीर के पास पहुँचे । स्कन्दक की दृष्टि उनके तेजस्वी शरीर पर पड़ते ही उनके अलौकिक रूप, रंग और तेज से वह आश्चर्य चकित हो गया । महातपस्वी, महाज्ञानी और दिव्यतेजस्वी महावीर के दर्शनमात्र से स्कन्दक का हृदय हर्षावेग से भर गया । वे भगवान् के निकट आये, त्रिप्रदक्षिणा पूर्वक वन्दन किया और हाथ जोड़कर सामने खड़े हो गए ।
स्कन्दक के मनोभाव को प्रकट करते हुए महावीर ने कहा— स्कन्दक ! पिंगलक के 'लोक सादि है या अनन्त ?' इत्यादि प्रश्नों से तुम्हारे मन में संशय उत्पन्न हुआ है ?
स्कन्दक -- जी हाँ, इस विषय में मेरा मन शंकित है और इसीलिए आपके चरणों में आया हूँ ।
महावीर - स्कन्दक ! द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव-भेद से लोक चार प्रकार का है । द्रव्य स्वरूप से लोक सान्त (अन्तवाला) है, क्योंकि वह धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकायरूप केवल पञ्चद्रव्यमय है । क्षेत्रस्वरूप से लोक असंख्यात योजन कोटाकोटि लंबा, असंख्यात योजन कोटाकोटि चौड़ा और असंख्यात योजन कोटाकोटि विस्तृत है, फिर भी वह सान्त है । कालस्वरूप से लोक अनन्त, नित्य और शाश्वत है क्योंकि वह पहले था, अब है और आगे रहेगा । त्रिकालवर्ती होने से कालात्मक लोक अनन्त हैं । और भावस्वरूप से भी लोक अनन्त हैं, क्योंकि वह अनन्त वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, संस्थान, गुरु
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