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________________ नीर्थकर-जीवन ११३ रोह-भगवन् ! पहले लोकान्त, पीछे सप्तम तनुवात या पहले सप्तम तनुवात और पीछे लोकान्त ? भगवान्-रोह ! ये दोनों शाश्वतभाव हैं, पहले भी कहे जा सकते है, पीछे भी, इनमें कोई अनुक्रम नहीं । रोह--भगवन् ! पहले लोकान्त, पीछे धनवात या पहले घनवात और पीछे लोकान्त ? भगवान्-रोह ! दोनों शाश्वतभाव हैं । रोह-भगवन् ! पहले लोकान्त, पीछे घनोदधि या पहले घनोदधि और पीछे लोकान्त ? भगवान्-दोनों शाश्वतभाव हैं, इनमें पहले-पीछे का कोई क्रम नहीं । रोह-भगवन् ! पहले लोकान्त, पीछे सप्तम पृथ्वी या पहले सप्तम पृथ्वी पीछे लोकान्त ? भगवान्–रोह ! ये दोनों शाश्वतभाव हैं, इनमें पहले-पीछे का कोई कम नहीं । इसी तरह रोह अनगार ने उक्त सभी प्रश्न अलोकान्त के साथ भी पूछे और भगवान् ने उत्तर दिये । रोह-भगवन् ! पहले सप्तम अवकाशान्तर, पीछे सप्तम तनुवात या पहले सप्तम तनुवात और पीछे सप्तम अवकाशान्तर ? भगवान्-दोनों शाश्वतभाव हैं, इनमें पहले-पीछे का क्रम नहीं । इसी प्रकार रोह ने पूर्व-पूर्व पद छोड़ कर उत्तर-उत्तर पद के साथ पहले-पीछे का क्रम पूछा और भगवान् ने उत्तर दिया । भगवान् के उत्तरों से रोह अनगार परम संतुष्ट हुआ । १. भ० श० १, उ० ६, प० ८०-८१ । श्रमण-८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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