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तीर्थंकर - जीवन
सप्रतिक्रमणधर्म स्वीकार करना चाहते हैं ।
स्थविरों की प्रार्थना को स्वीकार करते हुए महावीर ने कहा'देवानुप्रियो ! तुम सुखपूर्वक ऐसा कर सकते हो ।
इसके बाद पाश्र्वपित्य स्थविरों ने श्रमण भगवान् के पास पञ्चमहाव्रतिकधर्म स्वीकार किया और बहुत काल तक श्रामण्य पालकर अन्त में निर्वाणपद प्राप्त किया ।
रोह अनगार के प्रश्न
उस समय रोह नामक अनगार भगवान् से कुछ दूर बैठे तत्त्व चिन्तन कर रहे थे । लोकविषयक चिन्तन करते हुए उन्हें कुछ शंका उत्पन्न हुई । वे तुरन्त उठकर भगवान् के पास आये और वन्दन कर प्रश्न किया— भगवन् ! पहले 'लोक' और पीछे 'अलोक' या पहले 'अलोक' और पीछे 'लोक' ?
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भगवान् — रोह ! 'लोक' और 'अलोक' दोनों पहले भी कहे जा सकते हैं और पीछे भी । ये शाश्वत भाव हैं । इन में पहले पीछे का क्रम नहीं ।
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रोह—- भगवन् ! पहले जीव और पीछे अजीव या पहले अजीव और पीछे जीव ?
भगवान् —रोह ! जीव- अजीव भी शाश्वतभाव हैं, इनमें भी पहलेपीछे का क्रम नहीं ।
रोह — भगवन् ! पहले भवसिद्धिक और पीछे अभवसिद्धिक या पहले अभवसिद्धिक और पीछे भवसिद्धिक ?
भगवान् — रोह ! भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक दोनों शाश्वतभाव हैं । इनमें भी पहले पीछे का क्रम नहीं ।
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१. भ० श० ५, उ० ९ प० २४७-२४८ |
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