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तीर्थंकर-जीवन
१०७ सदालपुत्र का विशेष स्थान था । उसके धर्मपरिवर्तन करने की मंखलिपुत्र के हृदय में कभी कल्पना भी नहीं हुई थी । जब उसने सद्दालपुत्र के आजीवक-धर्म छोड़ने की बात सुनी तो मानों उस पर वज्रपात हो गया । क्रोध से उसका शरीर काँपने लगा, ओंठ फड़कने लगे और चेहरा लाल हो उठा । क्षणभर अवाक् हो ओंठों को चबाता हुआ अपने भिक्षु-संघ से बोलाभिक्षुओ ! सुनते हो, पोलासपुर का धर्म-स्तंभ गिर गया । श्रमण महावीर के उपदेश से सद्दालपुत्र आजीवक संप्रदाय को छोड़ कर निर्ग्रन्थ-प्रवचन का भक्त हो गया है । कैसा आश्चर्य है ! कितने खेद की बात है !! भिक्षुओ चलिये, पोलासपुर की ओर शीघ्र चलिये । सदाल को फिर से आजीवकधर्म में लाकर स्थिर करना, अपना सर्वप्रथम कर्तव्य है । अपने भिक्षु-संघ के साथ मंखलि गोशालक ने पोलासपुर की ओर प्रयाण किया । उसे पूर्ण विश्वास था कि पोलासपुर जाते ही सद्दालपुत्र फिर आजीवक-संघ का सभ्य बन जायगा । इसी आशा में उसने बड़ी जल्दी पोलासपुर का मार्ग तय किया ।
पोलासपुर में आजीवक-संघ की एक सभा' थी, गोशालक ने उसी सभा में डेरा डाला । कुछ भिक्षुओं के साथ गोशालक सद्दालपुत्र के स्थान पर गया । वह सद्दालपुत्र जो गोशालक का नाममात्र सुन कर पुलकित हो उठता था, आज उसे अपने मकान पर आये हुए देख कर भी उसने कोई संभ्रम नहीं दिखाया ! गोशालक को देख कर न वह उठा ही और न उसका गुरुभाव से सत्कार ही किया । मंखलि श्रमण को अपनी शक्ति की थाह मिल गयी । सद्दालपुत्र को पुनः आजीवक मतानुयायी बनाने की उसकी आशा विलीन-सी हो गई । उसने सोचा उपदेश द्वारा या प्रतिकूलता दिखाने से सद्दालपुत्र का अनुकूल होना कठिन है । शान्ति और कोमलता को धारण करते हुए गोशालक बोला देवानुप्रिय ! महाब्राह्मण यहाँ आ गये ?
सद्दालपुत्र-महाब्राह्मण कौन ? गोo-श्रमण भगवान् महावीर ।
१. सभा करने का मकान-सभाभवन ।
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