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________________ १०६ श्रमण भगवान् महावीर कोई पुरुष चुराले, बिखेर दे, फोड़ डाले या फेंक दे अथवा तेरी स्त्री अग्निमित्रा के पास जाए तो तुम उसे क्या दण्ड दोगे ? सद्दालपुत्र-भगवन् ! उस पुरुष को मैं गालियाँ दूँ, पीहूँ, बाँधू, तर्जन-ताड़न करूँ और उसके प्राण तक ले लूँ । महावीर-सद्दालपुत्र ! तुम्हारे मत से न कोई पुरुष तुम्हारे बर्तन तोड़फोड़ वा चुरा सकता है, न ही तुम्हारी स्त्री के पास जा सकता है और न ही तुम उसे तर्जन, ताड़नादि दण्ड ही दे सकते हो, क्योंकि सब भाव नियत ही होते हैं । किसी का किया कुछ नहीं होता । यदि तुम्हारे बर्तन किसी से तोड़े-फोड़े जा सकते हैं, अग्निमित्रा के पास कोई जा सकता है और इन कामों के लिए तुम किसी को दण्ड दे सकते हो तो फिर 'पुरुषार्थ नहीं, पराक्रम नहीं, सर्वभाव नियत हैं' यह तुम्हारा कथन असत्य सिद्ध होगा । सद्दालपुत्र समझ गया । नियतिवाद का सिद्धान्त कैसा अव्यवहारिक है, इसका उसे पता लग गया । वह श्रमण भगवान् महावीर के चरणों में नतमस्तक हो कर बोला--भगवन् ! मैं निर्ग्रन्थ-प्रवचन का उपदेश सुनना चाहता भगवान् ने सद्दालपुत्र की इच्छा का अनुमोदन करते हुए निर्ग्रन्थप्रवचन का उपदेश दिया जिसे सुनकर सद्दालपुत्र को जिन-धर्म पर श्रद्धा और रुचि जाग्रत हुई । उसी समय उसने द्वादशव्रत सहित गृहस्थधर्म स्वीकार किया । घर जाकर सद्दालपुत्र ने अपने नये धर्म और नये धर्माचार्य के स्वीकार की बात अग्निमित्रा से कही और उसे भी एक बार भगवान् महावीर के मुख से निर्ग्रन्थ प्रवचन सुनने और उस पर श्रद्धा लाने की सलाह दी । अग्निमित्रा अपना रथ सजा कर भगवान् के पास गई और उनका दिव्य उपदेश सुनकर उसके हृदय में यथार्थ श्रद्धा उत्पन्न हुई और उसी समय सम्यक्त्वमूल द्वादशव्रतात्मक गृहस्थ-धर्म स्वीकार कर अपने स्थान गई । सद्दालपुत्र के धर्मपरिवर्तन का समाचार आजीवक-संघ के नेता मंखलिपुत्र गोशालक के कानों तक पहुँचा । आजीवक मतानुयायी गृहस्थों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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