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श्रमण भगवान् महावीर कुछ समय तक श्रमण भगवान् कौशांबी तथा उसके समीपवर्ती ग्रामनगरों में विचरे और फिर विदेह- भूमि की ओर विहार कर गये । ग्रीष्मकाल पूरा होते-होते भगवान् वैशाली पहुंचे और वर्षावास वैशाली में किया । २१. इक्कीसवाँ वर्ष (वि० पू० ४९२-४९१)
वर्षावास पूरा होने पर भगवान् ने वैशाली से उत्तरविदेह की ओर प्रयाण किया और मिथिला होते हुए काकन्दी पधारे । काकन्दी में धन्य, सुनक्षत्र आदि को दीक्षा दी ।
काकन्दी से भगवान् ने पश्चिम की ओर विहार किया और श्रावस्ती होते हुए काम्पिल्य नगर पधारे । काम्पिल्यनिवासी कुण्डकोलिक गृहपति को श्रमणोपासक बना कर अहिच्छत्रा होते हुए गजपुर पहुँचे । यहाँ पर निर्ग्रन्थप्रवचन का उपदेश दे कर अनेक श्रद्धालुओं को निर्ग्रन्थमार्ग में स्थिर किया और यहाँ से वापस लौट कर आप पोलासपुर पधारे ।
पोलासपुर में सद्दालपुत्र नामक एक कुम्हार रहता था । उसकी पोलासपुर के प्रतिष्ठित तथा धनवान गृहस्थों में गणना होती थी। उसके पास तीन क्रोड़ की संपत्ति थी और दस हजार गायों का एक गोकुल । सद्दालपुत्र अपने धंधे में प्रवीण और प्रसिद्ध व्यापारी था । उसके आधिपत्य में मिट्टी के बर्तन की पाँच सौ दूकानें चलती थीं जिनमें हजारों कुम्हार उसकी निगरानी में काम करते थे । सद्दालपुत्र आजीवक धर्म का उपासक था । इतना ही नहीं, वह आजीवक धर्म का एक कुशल अभ्यासी था, उसके अस्थिमज्जा आजीवक-धर्म के संस्कारों से रंगे हुए थे, उसके विचार में आजीवक-धर्म ही परम धर्म था और बाकी सब पाखंड । इसकी स्त्री अग्निमित्रा भी आजीवकोपासिका थी ।
एक दिन रात्रि के समय सद्दालपुत्र सुख की नींद सो रहा था तब किसी देव ने उससे कहा-~- 'सद्दालपुत्र ! कल प्रातः इधर सर्वज्ञ, सर्वदर्शी महाब्राह्मण पधारेंगे । उनके पास जाकर प्रातिहारिक शय्या पीटफलकादि के लिये उन्हें निमन्त्रित करना' । सद्दालपत्र इस दिव्य वाणी से सावधान हो गया । उसने सोचा--'प्रात:काल मेरे धर्माचार्य भगवान् मंखलिपुत्र पधारेंगे,
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