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श्रमण भगवान् महावीर
राजगृह और कौशांबी के बीच काशिराष्ट्र की प्रसिद्ध नगरी आलभिया पड़ती थी । भगवान् कुछ समय तक आलभिया में ठहरे । यहाँ ऋषिभद्र प्रमुख बहुत से धनाढ्य श्रमणोपासक रहते थे । एक समय श्रमणोपासकों की उस मंडली में देवों की आयुष्यस्थिति के संबन्ध में प्रश्न उठा- - देवलोकों में देवों की आयुष्यस्थिति कितने काल की है ?
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मंडली के एक सभ्य ऋषिभद्र ने कहा—आर्यो ! देवलोकों में देवों की आयुष्यस्थिति कम- -से- - कम १० हजार वर्ष की और ज्यादा-से-ज्यादा ३३ सागरोपम की कही है, इसके बाद न देव हैं न देवलोक ।
ऋषिभद्र के उक्त उत्तर से श्रमणोपासकों के मनका समाधान नहीं हुआ, वे अपने अपने स्थान को चले गये ।
उस समय कौशांबी जाते हुए भगवान् महावीर आलभिया के शंकवन उद्यान में पधारे । भगवदागमन के समाचार पवनवेग से नगर में पहुँचे और दर्शन वन्दन के इच्छुक नागरिकों का समूह शंखवन की तरफ उमड़ पड़ा । आलभिया-निवासी ऋषिभद्रपुत्र प्रमुख श्रमणपासक भी बड़ी सजधज से भगवान् के समवसरण में गए और वन्दन नमस्कार करने के उपरान्त धर्म श्रवण किया ।
धर्मदेशना के अन्त में श्रमणोपासक उठे और वन्दन करके बोलेभगवन् ! ऋषिभद्र श्रमणोपासक देवों की आयुष्यस्थिति कम-से-कम १० हजार वर्ष की और ज्यादा-से-ज्यादा ३३ सागरोपम की बताते हैं, क्या यह ठीक है ?
श्रमण भगवान् ने कहा— आर्यो ! ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासक का यह कथन यथार्थ है 1
भगवान् का स्पष्टीकरण सुनकर श्रमणोपासक उठे और ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासक के समीप गये एवं नमस्कार कर सविनय क्षमाप्रार्थना की। इसके बाद ऋषिभद्र प्रमुख आलभिया का श्रमणोपासक संघ देर तक भगवान् पास धर्म चर्चा करता रहा ।
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