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स्मरणांजलि
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पन्यास श्री कल्याणविजयजी महाराज साहेब ने काफी विशाल संख्या में साहित्य-रचना की है । उनके साहित्य का परिचय देते हुए जैन संघ के प्रसिद्ध स्वर्गस्थ पंडितजी श्री मफतलाल झवेरचंद गांधी ने "कल्याणकलिका" ग्रंथ में स्मरणांजलि देते हुए लिखा है
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पूज्य पन्यास श्री कल्याणविजयजी गणि, जैन शासन में प्राचीन ग्रंथों के संशोधक, आगम, व्याकरण, न्याय इत्यादि ग्रंथों के प्रकांड विद्वान्, इतिहास के समर्थ ज्ञाता, विधि विधान ग्रंथों के विशिष्ट ज्ञाता, ज्योतिषशास्त्र के उद्भट्ट विद्वान् और प्राचीन शिल्प विज्ञान के गहरे अभ्यासी थे ।
जैन जगत् के उपरांत समग्र भारत में इतिहासवेत्ता के रूप में उनकी विशिष्ट ख्याति थी, और इतिहास के बारे में उनका अभिप्राय सन्मानीय माना जाता था ।
प्राचीन इतिहास के संबंध में हमारे जैन शासन में तीन व्यक्तिओं की गणना होती थी : १. आचार्य इन्द्रसूरिजी म. २. पन्यास श्री कल्याणविजय गणि, ३. मुनिश्री दर्शनविजयजी ( त्रिपुटी म.) ।
तीनों में कल्याणविजयजी का अपना विशिष्ट स्थान था । उन्होंने जैन इतिहास के संशोधन के साथ साथ कुछ ऐसी विशेष वातें संशोधनात्मक स्तर पर प्रस्तुत की थी, जिसे लेकर भारत के गणमान विद्वान् उनके अभिप्राय का आदर करते थे । इसका उदाहरण है उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक 'वीरनिर्वाण संवत् और जैन कालगणना' ।
उन्होंने अपने जीवनकाल के दौरान करीबन तीस जितने ग्रंथ लिखे
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