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तीर्थंकर-जीवन
चार कोस-एक योजन ।
उक्त योजन प्रमाण लंबा-चौड़ा और गहरा गोल प्याले के आकार का एक पल्य (गड्ढा) इस प्रकार लूंस ढूंस कर वालाग्रों से भरा जाय कि उसमें अग्नि, जल तथा वायु तक भी प्रवेश न कर सके । उस पल्य में से एक सौ वर्ष में एक वालाग्र निकाला जाय और इस प्रकार सौ-सौ वर्ष में एकएक वालाग्र को निकालने पर जितने काल में वह 'पल्य' खाली हो उतने काल को एक 'पल्योपम' काल कहते हैं ।
ऐसे दस कोटकोटि' पल्योपमों का एक सागरोपम होता है । चार कोटाकोटि सागरोपम का सुषमसुषमा नामक पहला 'अरक' । तीन कोटाकोटि सागरोपम का सुषमा नामक दूसरा 'अरक' । दो कोटाकोटि सागरोपम का सुषम दुःषमा नामक तीसरा 'अरक' ।
बयालीस हजार वर्ष कम एक कोटाकोटि सागरोपम का दु:षमसुषमा नामक चौथा 'अरक' ।
इक्कीस हजार वर्ष का दुःषमा नामक पाँचवाँ 'अरक' ।
इक्कीस हजार वर्ष का दुःषमदुःषमा नामक छट्ठा 'अरक' । इन छ: आरों के समुदाय को अवसर्पिणी कहते हैं ।
फिर इक्कीस हजार वर्ष का दुःषमदु:षमा । इक्कीस हजार वर्ष का दुःषमा । बयालीस हजार वर्ष कम एक कोटकोटि सागरोपम का दुःषमसुषमा । दो कोटाकोटि सागरोपम का सुषमदुःषमा ।
तीन कोटाकोटि सागरोपम का सुषमा और चार कोटाकोटि सागरोपम का सुषमसुषमा ।
१. एक करोड़ को एक करोड़ से गुनने से एक कोटाकोटी संख्या होती है और कोटाकोटि का दसगुना दस कोटाकोटि ।
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