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________________ ८८ औपमिक है । श्रमण भगवान् महावीर हे गौतम! इतना ही गणित का विषय है । इसके आगे का काल गौतम—भगवन् ! ‘औपमिक' काल किसे कहते हैं ? महावीर - 'औपमिक' दो तरह का होता है ? 'पल्योपम' और 'सागरोपम' । गौतम — भगवन् ! 'पल्योपम' और 'सागरोपम' का क्या स्वरूप है ? महावीर - गौतम ! सुतीक्ष्ण शस्त्र से भी जिसका छेदन- भेदन न किया जा सके ऐसे 'परमाणु' को सिद्धपुरुष सब प्रमाणों का ' आदि प्रमाण' कहते हैं । मूसल । Jain Education International अनन्त परमाणुओं का समुदाय = एक उत्स्श्लक्ष्णश्लक्ष्णका । आठ उत्स्श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका = एक श्लक्ष्णश्लक्ष्णका । आठ श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका = एक ऊर्ध्वरेणु । आठ ऊर्ध्वरेणु = एक त्रसरेणु । आठ त्रसरेणु = एक रथरेणु । आठ रथरेणु - एक वालाग्र । आठ वालाग्र = एक लिक्षा । आठ लिक्षा= एक यूका । = आठ यूका - एक यवमध्य । आठ यवमध्य=एक अँगुल । छ: अँगुल = एक पाद । बारह अँगुल= एक वितस्ति (बीत्ता) । चौबीस अँगुल= एक रत्नी (हाथ) । अड़तालीस अँगुल= एक कुक्षि । छियानबे अँगुल= एक दण्ड । धनु । यूप । नालिका । अक्ष । अथवा दो हजार धनु = एक गव्यूत (कोस) For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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