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तीर्थंकर-जीवन का भला करते हैं ।
जयन्ती-श्रवणेन्द्रिय के वश में पड़े हुए जीव क्या बाँधते हैं ? (किस प्रकार के कर्म बांधते हैं ?)
महावीर-जयन्ती ! श्रवणेन्द्रिय के वशीभूत जीव आयुष्य को छोड़ शेष सातों ही कर्म-प्रकृतियाँ बाँधते हैं । पूर्वबद्ध शिथिलबन्धन को दृढ़-बन्धन और लघु-स्थितिकों को दीर्घस्थितिक कर देते हैं, इस प्रकार कर्मों की स्थिति को बढ़ाकर वे चतुर्गतिरूप संसार में भटका करते हैं ।
जयन्ती ने इसी प्रकार चक्षु, घ्राण, जिह्वा और स्पर्शेन्द्रिय के वशीभूत जीवों के संबंध में भी प्रश्न पूछे और भगवान् ने उन सब के सम्बन्ध में यही उत्तर दिया ।
प्रश्नोत्तरों से जयन्ती को पूर्ण संतोष हुआ । उसने हाथ जोड़कर कहा-भगवन् ! कृपया मुझे प्रव्रज्या देकर अपने भिक्षुणीसंघ में दाखिल कीजिये !
श्रमण भगवान् ने जयन्ती की प्रार्थना को स्वीकृत किया और उसे सर्वविरति सामायिक की प्रतिज्ञा एवं पंच महाव्रत प्रदान कर भिक्षुणीसंघ में दाखिल कर लिया ।
वत्सभूमि से भगवान् ने उत्तरकोसल की तरफ विहार किया और अनेक गाँव-नगरों में निर्ग्रन्थ प्रवचन का उपदेश देते हुए श्रावस्ती पहुँचे । श्रावस्ती के कोष्ठक चैत्य में आपका जो उपदेश हुआ, उसके फलस्वरूप अनेक गृहस्थ जैनसंघ में दाखिल हुए । अनगार सुमनोभद्र और सुप्रतिष्ठ आदि की दीक्षायें भी इसी अवसर पर हुई थीं ।।
कोसल प्रदेश से विहार करते हए श्रमण भगवान् फिर विदेहभूमि में पधारे । यहाँ वाणिज्यग्राम-निवासी गाथापति आनन्द और उनकी स्त्री शिवानन्दा ने आपके समीप द्वादशव्रतात्मक गृहस्थधर्म स्वीकार किया ।
१. (भगवती श० १२, उ० २. प ५५६-५५८)
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