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________________ ८६ श्रमण भगवान् महावीर ___ इस साल का वर्षा चातुर्मास्य भगवान् ने वाणिज्यग्राम में व्यतीत किया । १६. सोलहवाँ वर्ष (वि० पू० ४९७-४९६) वाणिज्यग्राम से शीतकाल में विहार कर भगवान् ने फिर मगधभूमि में प्रवेश किया । अनेक नगरों में ठहरते तथा उपदेश करते आप राजगृह के गुणशील चैत्य में पधारे । राजगृह के राजा, रानी तथा राजकुमार आदि राजपरिवार और इतर नागरिक-जन भगवान् के धर्मोपदेश का लाभ लेने के लिए वहाँ उपस्थित हुए । काल-प्रमाण इसी अवसर पर इन्द्रभूति गौतम ने भगवान् से कालविषयक एक प्रश्न पूछा-भगवन् ! एक मुहूर्त में कितने उच्छास होते हैं ? महावीर-गौतम ! असंख्यात 'समयों' का समुदाय एक 'आवलिका' कहलाती है । संख्यात आवलिकाओं का एक 'उच्छास' और उतनी ही अवलिकाओं का एक 'निःश्वास' होता है । सशक्त तथा नीरोग मनुष्य के एक श्वासोच्छास को 'प्राण' कहते हैं और इस प्रकार के सात प्राणों का एक 'स्तोक,' सात स्तोकों का एक 'लव' और ७७ लवों का एक 'मुहूर्त' कहा है । इस प्रकार एक मुहूर्त में ३७७३ श्वासोच्छ्वास होते हैं । तीस मुहूर्तों का एक 'अहोरात्र' (रात-दिन) होता है । पंदरह अहोरात्र=एक 'पक्ष' । दो पक्ष= एक 'मास' । दो मास= एक 'ऋतु' । तीन ऋतु= एक 'अयन' । दो अयन= एक 'संवत्सर' (वर्ष) । पाँच संवत्सर=एक 'युग' । बीस युग= सौ वर्ष । दस सौ वर्ष= एक 'हजार' । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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