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तीर्थंकर-जीवन चौदहवाँ वर्ष (वि० पू० ४९९-४९८)
___वर्षाकाल व्यतीत होने पर श्रमण भगवान् ने राजगृह से विदेह की ओर विहार किया । अनेक गाँवों नगरों में धर्म-प्रचार करते हुए भगवान् महावीर ब्राह्मण-कुण्ड पहुँचे और नगर के बाहर बहुसाल उद्यान में मुकाम किया ।
___ बहुसाल चैत्य ब्राह्मण-कुण्ड के निकट तो था ही, पर वह उनके जन्म-स्थान क्षत्रिय-कुण्डपुर से भी दूर नहीं था । भगवान् के बहुसाल में पधारने के समाचार दोनों कुण्डपुरों में पवन वेग से पहुँचे और हजारों दर्शनार्थियों से बहुसाल चैत्य का मैदान भर गया ।
श्रमण भगवान् महावीर ने गंभीर ध्वनि से जो धर्मदेशना की उसे सुनकर श्रोताओं के हृदयपट खुले गये । बहुतों ने श्रमणधर्म स्वीकार किया, बहुतों ने गृहस्थधर्म के नियम धारण किये और बहुत से लोग निर्ग्रन्थ प्रवचन के श्रद्धालु हुए ।
श्रमण भगवान् की इस धर्मसभा में श्रमणधर्म स्वीकार करनेवालों में जमालि, ऋषभदत्त ब्राह्मण तथा उनकी सहधर्मिणी देवानन्दा के नाम उल्लेखनीय हैं ।
जमालि क्षत्रियकुण्डपुर का क्षत्रियकुमार था । भगवान् महावीर के उपदेशामृत का पान कर वह इस असार संसार से विरक्त हो गया और पाँच सौ साथियों के साथ प्रव्रजित हो मोक्षमार्ग की साधना करने लगा । ऋषभदत्त तथा देवानन्दा की दीक्षा
ऋषभदत्त ब्राह्मणकुण्ड के एक प्रतिष्ठित कोडालगोत्रीय ब्राह्मण थे । इनकी धर्मपत्नी जालंधरगोत्रीय देवानन्दा ब्राह्मणी थीं । ऋषभदत्त और देवानन्दा ब्राह्मण होते हुए भी जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आदि तत्त्वों के ज्ञाता श्रमणोपासक थे । बहुसाल में भगवान् महावीर का आगमन सुनकर ऋषभदत्त बहुत खुश हुए । यह खुशखबरी देवानन्दा को सुनाते हुए वे बोलेदेवानुप्रिये ! सर्वज्ञ भगवान् महावीर आज अपने नगर के परिसर में पधारे हैं ।
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