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________________ ७४ श्रमण भगवान् महावीर इस प्रकार श्रमण भगवान् महावीर ने वैशाख शुक्ला एकादशी के दिन मध्यमानगरी के महासेन नामक उद्यान में साधु-साध्वी-श्रावकश्राविकारूप चतुर्विध संघ की स्थापना की । इसके पश्चात् भगवान् महावीर ने सपरिवार राजगृह के लिये प्रस्थान किया । राजगृह में, जो उस समय संपन्न नगरों में से एक था, शैशुवंशीय राजा श्रेणिक राज्य करते थे। इनके अनेक रानियाँ और राजकुमार थे । सबसे छोटी रानी चेल्लना भगवान् महावीर के मामा वैशालीपति चेटक की पुत्री और जैन श्रमणोपासिका (श्राविका) थी । राजकुमारों में अभयकुमार आदि भी निग्रंथ प्रवचन के अनुयायी थे । नागरथिक, सुलसा आदि दूसरे भी अनेक राजगृह निवासी निग्रंथ प्रवचन को माननेवाले थे। इन सब बातों को ध्यान में रखकर भगवान् महावीर मध्यमा से विहार करते हुए राजगृह के गुणशील चैत्य में जाकर ठहरे । । भगवान् के आगमन का समाचार राजगृह के कोने-कोने में पहुँच गया । परिणामस्वरूप राजा श्रेणिक, राजपरिवार, राजकर्मचारी, सेठ-साहूकार और साधारण प्रजागण गुणशील चैत्य की तरफ चल पड़े । कुछ ही समय में हजारों मनुष्यों की भीड़ से उद्यान भर गया । सब लोग भगवान् को वन्दन कर उपदेश श्रवण करने के लिए यथास्थान बैठ गये । देवनिर्मित समवसरण में ऊँचे आसन पर बैठकर भगवान् महावीर ने उस महती सभा में हृदयग्राही धर्मोपदेश दिया । भगवान् ने बतलाया कि अनादि अनन्त संसार में भटकते हुए जीव को मनुष्यत्व, धर्मश्रवण, सत्यश्रद्धा तथा संयमवीर्य-ये चार पदार्थ बड़ी कठिनता से प्राप्त होते हैं । ये चारों मोक्षप्राप्ति में सहायक बनते हैं, अत: इनसे यथोचित लाभ उठाना हर एक व्यक्ति का कर्तव्य है । __मनुष्य, देव, तिर्यञ्च और नारक-गतिरूप यह संसार एक रंगभूमि है । इसमें संसारी जीव अपने कर्मों के अनुसार कभी मनुष्य कभी देव कभी तिर्यञ्च और कभी नारक के रूप में प्रकट होते हैं और क्षणिक लीला दिखा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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