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________________ गुरुदेव श्री केसरविजयजी का स्वास्थ्य बराबर नहीं रहता था । १९७०-७१ के दो चातुर्मास तखतगढ में किये । तखतगढ के संघ ने एवं दोनों मुनिओं ने गुरुदेव की रातदिन एक मन से सेवा की । मुनि श्री के उपदेश से संघ ने पाठशाला प्रारंभ की । वि० सं० १९७१ के फाल्गुन शुक्ला २ के दिन गुरुदेव मुनि श्री केसरविजयजी महाराज का कालधर्म हुआ । वे दिवंगत हुए । अग्निसंस्कार के स्थान पर संघ ने छतरी बनवाई । वि० सं० १९७२ के जालोर के चातुर्मास के दौरान वहाँ के संघ का कुसंप मुनि श्री कल्याणविजयजी ने दूर किया । अपने गुरुमहाराज के नाम से श्री केसरविजय जैन पुस्तकालय की स्थापना की जिसमें आज भी ग्रंथों का विशाल संग्रह व्यवस्थित है। वि० सं० १९७३ का चातुर्मास डीसा में किया । वहाँ श्री कल्याणविजयजी जैन पाठशाला की स्थापना की, जो आज भी चल रही है। सं० १९७५ में बडोदरा की स्थिरता के दौरान पाली भाषा का अध्ययन किया । सी. डी. दलाल वगैरह विद्वानों का परिचय हुआ । वहाँ गायकवाड़ ओरिएन्टल सिरिज में प्रसिद्ध होनेवाले-वसंतविलास, भविसयत्त कहा वगैरह के प्रूफ मुनि श्री कल्याणविजयजी ने देखें । 'वसुदेव हिण्डी' का संपादन कार्य मुनिश्री को सौंपा गया परंतु सूरत से वह ग्रंथ प्रकाशित होने के समाचार मिलने से वह कार्य स्थगित कर दिया गया । पंजिका के साथ तत्त्वसंग्रह का संशोधन करने की विनति श्री दलाल ने मुनिश्री से की थी, पर सी. डी. दलाल का निधन हो जाने से वह कार्य भी संपन्न नहीं हो सका । वि० सं० १९७५ का चातुर्मास आचार्य श्री सिद्धिसूरिजी महाराज की निश्रा में मेहसाणा में हुआ । वहाँ कल्याणविजयजी ने मराठी, और बंगाली भाषा लिपि और इसके बाद के पालीताना के चातुर्मास के दौरान ब्राह्मी, कुटिल, गुप्त इत्यादि लिपियों का अध्ययन किया । आरंभसिद्धि वगैरह ज्योतिष के ग्रंथों का ज्ञान प्राप्त किया । इस दौरान पंडित बेचरदासजी के देवद्रव्य विषयक विचारों के लेख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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