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________________ तीर्थंकर-जीवन वस्तु नहीं । महावीर—यदि माया पुरुष की शक्ति ही है तो यह भी पुरुष के ज्ञानादि गुणों की तरह अरूपी अदृश्य होनी चाहिए । परन्तु यह तो है दृश्य । अतः सिद्ध होता है कि माया पुरुष की शक्ति नहीं । यह एक स्वतंत्र पदार्थ है। __पुरुषविवर्त मानने से भी पुरुषाद्वैत की सिद्धि नहीं हो सकती क्योंकि पुरुषविवर्त का अर्थ है पुरुष के मूल स्वरूप की विकृति, परन्तु पुरुष में विकृति मानने से उसे सकर्मक ही मानना पड़ेगा, अकर्मक नहीं । जिस प्रकार खालिस पानी में खमीर नहीं उत्पन्न होता उसी तरह अकर्मक जीव में विवर्त नहीं हो सकता । ___पुरुषवादी जिस पदार्थ को माया अथवा अज्ञान का नाम देते हैं वह वस्तुतः आत्मातिरिक्त जड़ पदार्थ है । पुरुषवादी इसे सत् या असत् न कह कर 'अनिर्वचनीय' कहते हैं जिससे सिद्ध होता है कि यह पुरुष से भिन्न पदार्थ है । इसीलिये तो वे इसे पुरुष की तरह 'सत्' नहीं मानते । 'असत्' न मानने का तात्पर्य तो केवल यही है कि यह माया आकाशपुष्प की तरह कल्पित वस्तु नहीं है। ___ अग्निभूति-ठीक है । दृश्य जगत् को 'पुरुषमात्र' मानने से प्रत्यक्ष अनुभव का निर्वाह नहीं हो सकता, यह मैं समझ गया हूँ । परन्तु जड़ तथा रूपी कर्म-द्रव्य चेटन तथा अरूपी आत्मा के साथ कैसे संबद्ध हो सकता है और उस पर अच्छा-बुरा असर कैसे डाल सकता है ? महावीर-जिस प्रकार अरूपी आकाश के साथ रूपी द्रव्यों का संपर्क होता है उसी तरह अरूपी आत्मा का रूपी कर्मों के साथ संबन्ध होता है । जिस प्रकार ब्राह्मीऔषधि और मदिरा आत्मा के अरूपी चैतन्य पर भलाबुरा असर करते हैं उसी तरह अरूपी चेतना आत्मा पर रूपी जड़ कर्मों का भी भला-बुरा असर हो सकता है । इस लम्बी चर्चा के बाद अग्निभूति ने भगवान् महावीर का सिद्धान्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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