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________________ ५२ श्रमण भगवान् महावीर के पश्चात् पटदि अन्य पदार्थों को देखेगा तब उसे पटादि का ज्ञान प्रकट होगा और पूर्वकालीन घटज्ञान तिरोहित (व्यवहित) हो जायगा । अन्यान्य पदार्थविषयक ज्ञान के पर्याय ही 'विज्ञानघन' (विविध पर्यायों का पिण्ड) है जो भूतों से उत्पन्न होता है । यहाँ 'भूत' शब्द का अर्थ पृथिव्यादि पाँच भूत नहीं है । यहाँ इसका अर्थ है 'प्रमेय'-अर्थात् पृथिवी, जल अग्नि, वायु तथा आकाश नहीं परन्तु जड़ चेतन समस्त ज्ञेय (जानने योग्य) पदार्थ । सब ज्ञेय पदार्थ आत्मा में अपने स्वरूप से भासमान होते हैं-घट घटरूप में भासता है, पट पटरूप में । ये भिन्न-भिन्न प्रतिभास ही ज्ञानपर्याय हैं । ज्ञान और ज्ञानी (आत्मा) में कथंचित् अभेद होने के कारण भूतों से अर्थात् भिन्न-भिन्न ज्ञेयों से विज्ञानधन अर्थात् 'ज्ञान-पर्यायों का उत्पन्न होना और उत्तरकाल में उन पर्यायों का तिरोहित (व्यवहित) होना कहा है। ___न प्रेत्यसंज्ञास्ति' का अर्थ 'परलोक की संज्ञा नहीं' ऐसा नहीं है । वास्तव में इसका अर्थ 'पूर्वपर्याय का उपयोग नहीं' ऐसा है । जब पुरुष में नये-नये ज्ञानपर्याय उत्पन्न होते हैं तब उसके पूर्वकालीन उपयोग व्यवहित हो जाने से उस समय स्मृतिपट पर स्फुटित नहीं होते इसी अर्थ को लक्ष्य करके 'न प्रेत्यसंज्ञास्ति' यह वचन कहा गया है । भगवान् महावीर के मुख से वेदवाक्य का समन्वय सुनते ही इन्द्रभूति के मन का अन्धकार विच्छिन्न हो गया । वे दोनों हाथ जोड़ कर बोलेभगवन् ! आपका कथन यथार्थ है। प्रभो ! मैं आपका प्रवचन सुनना चाहता हूँ। गौतम की प्रार्थना पर महावीर ने निग्रंथ प्रवचन का उपदेश दिया । उपदेश सुन कर वे संसार से विरक्त होकर निर्ग्रथधर्म में प्रव्रजित हुए । गौतम के ५०० छात्र भी जो उनके साथ ही आए थे, महावीर के पास प्रव्रजित हुए और वे सभी इन्द्रभूति के शिष्य रहे । इन्द्रभूति की प्रव्रज्या की बात पवनवेग से मध्यमा में पहुँची । नगर भर में यही चर्चा होने लगी । कोई कहता 'इन्द्रभूति' जैसे जिनके आगे शिष्य हो गए उन महावीर का क्या कहना है ! सचमुच वे ज्ञान के अथाह समुद्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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