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स्याद्वाद ७१६. (अनेकान्तात्मक वस्तु की सापेक्षता के प्रतिपादन मे
वाक्य के साथ 'स्यात्' लगाकर कथन करना स्थान न्य लक्षण है।) इस न्याय म प्रमाण, नय और वृनच के उक्त सात भग होते है। 'स्यात्'-सापेक्ष भगो को . कहते है। नय-युक्त भगो को नय कहते है और निरपेक्ष भ
दुर्न य । ७१० स्यात् अस्ति, स्यात् नास्ति. स्यात् अस्ति-नास्ति न्यान् अब
स्यात् अरित-अवक्तव्य, स्यात् नास्ति-अवक्तव्य, स्यात्
नास्ति-अवक्तव्य--इन्हे प्रमाण सप्तभगी जानना च ७१८ स्व-द्रव्य, स्व-क्षेत्र, स्व-बाल और स्व-भाव की अपेक्षा
अस्तिस्वरूप है। वहौ पर-द्रव्य, पर-क्षेत्र, पर-कार
पर-भाव की अपेक्षा नास्तिस्वरूप है। ७१९. स्व-द्रव्यादि चतुष्टय और पर-द्रव्यादि चता टय दोन
अपेक्षा लगाने पर एक ही वस्तु स्यात्-अस्ति और स्यात्-- रूप होती है। दोनों धर्मो को एक साथ कहने की अपे वस्तु अवक्तव्य है। इसी प्रकार अपने-अपने नय के साथ अ योजना करने पर अस्ति-अवक्तव्य, नास्ति अवक्तव्य
अस्ति-नास्ति अवक्तव्य है। ७२०. स्यात् पद तथा नय-निरपेक्ष होने पर यही सातो भंग
भगी कहलाते है। जैसे वस्तु अस्ति ही है, नास्ति । उभयरूप ही है, अवक्तव्य ही है, अस्ति-अवक्तव्य नास्ति-अवक्तव्य ही है या अस्ति-नास्ति अवक्तव्य ही (किसी एक ही पहलू या दृष्टिकोण पर जोर देना या ।
रखना तथा दूसरे की सर्वथा उपेक्षा करना दुर्नय है ।) ७२१. वस्तु के एक धर्म को ग्रहण करने पर उसके प्रतिपक्ष
धर्म का भी ग्रहण अपने-आप हो जाता है, क्योकि दोन धर्म वस्तु के स्वभाव है । अत. सभी वस्तु-धर्मो में भगी की योजना करनी चाहिए।
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