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नय के विना मनुष्य को स्याद्वाद का बोध नही होता । अतः जो एकान्त का या एकान्त आग्रह का परिहार करना चाहता है, उसे नय को अवश्य जानना चाहिए ।
स्याद्वाद
६९२. जैसे धर्मविहीन मनुष्य सुख चाहता है या कोई जल के बिना अपनी प्यास बुझाना चाहता है, वैसे ही मूढजन नय के विना द्रव्य के स्वरूप का निश्चय करना चाहते है ।
६९३. तीर्थकरों के वचन दो प्रकार के है- - सामान्य और विशेष । दोनो प्रकार के वचनों की राशियों के ( संग्रह के ) मूल प्रतिपादक नय भी दो ही है - - द्रव्याथिक और पर्यायार्थिक । शेष सब नय इन दोनो के ही अवान्तर भेद है । ( द्रव्यार्थिक नय वस्तु के सामान्य अश का प्रतिपादक है और पर्यायाथिक विशेषाश का 1 ) ६९४. द्रव्यार्थिक नय का वक्तव्य ( सामान्यांश ) पर्यायार्थिक नय के लिए नियमतः अवस्तु है और पर्यायार्थिक नय की विषयभूत वस्तु (विशेषांश) द्रव्यार्थिक नय के लिए अवस्तु है ।
६९५. पर्यायार्थिक नय की दृष्टि से पदार्थ नियमतः उत्पन्न होते है और नष्ट होते है । और द्रव्यार्थिक नय की दृष्टि से सकल पदार्थ सदैव अनुत्पन्न और अविनाशी होते है ।
६९६. द्रव्यार्थिक नय से सभी द्रव्य है और पर्यायार्थिक नय से वह अन्यअन्य है, क्योंकि जिस समय में जिस नय से वस्तु को देखते है, उम समय वह वस्तु उसी रूप मे दृष्टिगोचर होती है ।
६९७. जो ज्ञान पर्याय को गौण करके लोक मे द्रव्य का ही ग्रहण करता है, उसे द्रव्यार्थिक नय कहा गया है । और जो द्रव्य को गौण करके पर्याय का ही ग्रहण करता है, उसे पर्यायार्थिक नय कहा गया है ।
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