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अप्रमाद-सूत्र
(६) जीवन भमस्टन है-अर्थात् एक बार टूट जाने के बाद फिर नहीं जुस्ता; प्रत एक जण भी प्रमाद न करो।
प्रमाद, हिसा और असंयम में अमूल्य यौवन-काल बिता टेने के बाद जर वृन्दावस्था प्रायगी, तब तुम्हारी कान रक्षा चरेगा ~ तब किम को गाण लोगे " यह खूर सोच-विचार को।
(१००) जो मनुष्य अनेक पाप-बम कर, वैर-विरोध बढ़ाकर अमृत की तरह धन का संग्रह करते है, ये अन्त में कमी के हद पाश में बंधे हुए सारी धन-सम्पत्ति यहीं छोटकर, नरक को प्राप्त होते हैं ।
(११) ममत्त पुरष धन' के द्वारा न तो इस लोक में ही अपनी रक्षा कर माता है और न परलोक में । फिर भी धन के असीम मोह मे मूद मनुष्य, दीपक के बुझ जाने पर जैसे मार्ग नहीं दीस पडता, से ही न्याय-मार्ग को देखते हुए भी नहीं देख पाता |