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________________ सत्य-सूत्र (२६) विचारवान मुनि को वचन- शुद्धि का भली-भांति ज्ञान प्राप्त करके दूषित वाणी सदा के लिए छोड देनी चाहिए और खूब सोच-विचार कर बहुन परिमित और निर्दोष वचन बोलना चाहिए । इस तरह बोलने से सत्पुरुषो में महान् प्रशसा प्राप्त होती है। (३०) लाने को काना, ना सरु को नपु खक, रोगी को रोगी और चोर को चोर कहना यद्यपि रात्य है, तथापि ऐसा नहीं कहना चाहिए । (क्योकि इससे उन व्यन्त्यिो को दुख पहुँचता है।) (३१) जो मनुष्य भूलसे भी मूलत असत्य, किन्तु ऊपर से सत्य मालूम होनेवाली भाषा बोल उठना है, और वह भी पापसे अछूता नहीं रहता, तब मना जो जान-बूझकर अमत्य बोलता है। उसके पाप का तो कहना ही क्या। जो भाषा कठोर को, दूसरों को भारी दुःख पहुंचानेवाली हो-वह सत्य ही क्यों न हो-नही बोल्नी चाहिए। क्यों कि उससे पाप का भासव होता है ।
SR No.007831
Book TitleMahaveer Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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