________________
'
काम- सूत्र
६७
1
चिरस्थायी नहीं है । भोग-विलास के साधनों से रहित पुरुष को भोग वैसे ही छोड़ देते हैं, जैसे फलविहीन वृक्ष को पक्षी ।
( १६१ )
मानव-जीवन नश्वर है, उसमे भी ध्यायु तो परिमित है, एक मोक्ष मार्ग हो भविचज्ञ है, यह जानकर काम-भोगों से निवृत्त हो जाना चाहिए ।
( १६२ )
हे पुरुष ! मनुष्यों का जीवन अत्यन्त अल्प है --- क्षणभंगुर है, श्रतः शीघ्र ही पापकर्म से निवृत्त हो जा । संसार मे श्रासक्त तथा काम-भोगो से मूच्छित प्रसयमी मनुष्य बार-बार मोह को प्राप्त होते रहते हैं ।
( १६३ )
समो, इतना क्यों नहीं समझते ? परलोक में सम्यकू बोधि का प्राप्त होना बड़ा कठिन है । बीती हुई रात्रियाँ कभी लौटकर नहीं आतीं। फिर से मनुष्य-जीवन पाना आसान नहीं । ( १६४ )
काम-भोग बढ़ी मुश्किल से छूटते हैं, अधीर पुरुष तो इन्हें सहसा छोड़ ही नहीं सकते । परन्तु जो नहाव्रतों का पालन करने वाले साधुपुरुष हैं, वे ही दुस्तर भोग- समुद्र को तैर कर पार होते हैं, जैसे--- व्यापारी वणिक समुद्र को ।