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अप्रमाद-सूत्र
૭૩ (११६) प्रमाद-बहुन जीच अपने शुभाशुभ कर्मों के कारण अनन्त पार भय चक्र मे इधर से उधर घूमा करता है। है गौतम ! आए मान भी प्रमाद न कर।
(१७) मनुष्य-जन्म पा लिया तो क्या ? थार्यत्व का मिलना बहा कठिन है । बहुत-से जीव मनुप्याच पार भी दस्यु धौर म्लेच जातियों में जन्म लेते हैं। हे गौतम ! पण मात्र भी प्रमाद न कर।
(११८) प्रार्यत्व पार भी पाँच इन्द्रियों को परिपूर्ण पाना पड़ा कठिन है । बहुन-मे लोग थार्य क्षेत्र में जन्म लेकर भी विकल इन्द्रियों वाले टेने जाते है । हे गौतम हिण-मात्र भी प्रमाद न कर,।
(११६) पांघो इन्दियाँ परिपूर्ण पार भी उत्तम धर्म का अधण माप्त होना कठिन है। बहुत से लोग पाखण्डी गुरुयो की सेवा किया करते है । हे गौतम ! सण-मात्र भी प्रमाद न कर ।
उत्तम धर्म का धयण पाकर भी उपपर श्रद्धा का होना यहा कठिन है । बहुत-से लोग सब कुछ जान-बूझकर भी मिथ्यात्व को उपासना में ही लगे रहते है। है गौतम क्षण-मात्र भी प्रमाद न कर।