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कुछ वैष्णव हो गये, फिर भी अधिक संख्या जैनों की ही है । पल्लीवाल वैश्यों में भी सभी एक ही गच्छ के अनुयायी नहीं थे, यह प्राचीन शिलालेखों और प्रशस्तियों से स्पष्ट है। जिस प्रांत में जिस गच्छ का अधिक प्रभाव रहा था, जिसका जिससे अधिक संपर्क हुआ वे उसी के अनुयायी हो गये। जैन जातियों का प्राचीन इतिहास बहुत कुछ अंधकार में है, वही स्थिति पल्लीवाल जैन इतिहास की है। प्राप्त प्रमाणों से यथासंभव इस पुस्तक में प्रकाश डाला गया है ।। इति ।।
: श्री पल्लीवाल जैन इतिहास:
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