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________________ जैन जातियों एवं वंशों की स्थापना यह तो सुनिश्चित है कि भगवान महावीर के समय में जैन जातियों का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं था। सभी जातियों में लोग जैन धर्मानुयायी थे। जैन आगम उत्तराध्ययन सूत्र से स्पष्ट है कि भगवान महावीर के समय जो वैदिक धर्म में जन्म से जाति का संबंध माना जाता था वह जैन धर्म को मान्य नहीं था। गुणों से ही जाति की विशेषता जैन धर्म को मान्य थी। कर्म से ही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र होते हैं। महाभारत और बौद्ध ग्रंथ भी इसका समर्थन करते हैं। ___ मध्यकाल में जैनाचार्यों ने बहुत सी जाति वालों को जैन धर्म का प्रतिबोध दिया तो उनमें जैन संस्कार वंश परंपरा से चलते रहें इसके लिए उनको स्वतंत्र जाति या वंश के रूप में प्रसिद्ध किया गया, क्योंकि वैदिक धर्मानुयायी प्रायः समस्त वर्णों वाले माँसाहारी थे, पशुओं का बलिदान करते थे और बहुत से ऐसे अभक्ष्य भक्षण आदि के संस्कार उनमें रूढ़ थे और जो जैन धर्म के सर्वदा विपरीत थे। इसलिए जैनों का जातिगत संगठन करना आवश्यक हो गया । उनका नामकरण प्रायः उनके निवास स्थान पर ही आधारित था। जैसा कि 12 बारह जाति संबंधों पद्यों से स्पष्ट है - सिरि सिरिमाल उएसा पल्ली तहाय मेडतेः विश्वेरा डिंडूया षड्या तह नराण उरा॥1॥ हरिसउरा जाइला पुक्खर तह डिंडूयडाः खडिल्लवाल अद्धं, वारस जाइ अहीयाड॥2॥ अर्थात् श्रीमाल, ओसवाल, पल्लीवाल, मेडतवाल, डिडू, विश्वेरा, खंडेलवाल, नारायणा, हर्षोरा, जयसवाल, पुष्करा, डिडूयडा और आधे खण्डेलवाल ये साढ़े बारह जातियाँ होती है। इन जातियों के नामों से स्पष्ट है कि उनका नामकरण उनके निवास स्थान पर ही आधारित है। अतः पल्लीवाल जाति भी पल्ली या पाली में ही प्रसिद्ध हुई है। जाति के साथ किसी धर्म विशेष का पूर्णतः संबंध नहीं है जिस प्रकार श्रीमाली ब्राह्मण भी हैं और श्रीमाली जैन भी हैं इसी तरह खंडेलवाल और पल्लीवाल ब्राह्मण और जैन दोनों हैं। ओसवाल पहले सभी जैन थे, फिर राज्याश्रय आदि के कारण 8 =श्री पल्लीवाल जैन इतिहास =
SR No.007799
Book TitlePalliwal Jain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi, Bhushan Shah
PublisherMission Jainattva Jagaran
Publication Year2017
Total Pages42
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size15 MB
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