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विचरण करने की आज्ञा की। वह अतिशय विकट समय था। धर्म की जानकारी से लोग शून्य थे इतना ही नहीं, आर्थिक दृष्टि से भी लोगों का जीवनस्तर काफी पीछे था। गुजरात में बढ़े हुए और गुजरात में विचरण करने वाले साधु-साध्वी को यहाँ हर तरह की कठिनाइयाँ झेलनी पड़ती थी। जिनशासन रत्न कुमारपाल भाई ने मुंबई
और गुजरात के बहुत सारे दानवीर श्रेष्ठियों को पल्लीवाल क्षेत्र दिखाकर जगहजगह पर जिनालय और उपाश्रय बंधवाये। बीच में 2 साल के लिए पू. पंन्यास श्री भुवनसुंदर विजयजी म.सा. भी इस क्षेत्र में विचरण करके गये। आज हम भी यहाँ पर विचरण कर रहे हैं, लेकिन हम तो बने बनाये (तैयार) रास्ते पर चल रहे हैं जबकि पूर्व में विचरण करने वाले साधु-साध्वीजी भगवंत् एवं श्री कुमारपालभाई ने रास्ता तैयार करने का काम किया है।
करिबन एक साल रहने के बाद यह लगता है कि यदि निरंतर 4-5 साल के लिए गुरु भगवंतों का विचरण यहाँ होता रहे तो अलग-अलग संप्रदायों द्वारा फैलाये हुए कुतर्कों के जाल का पर्दा फाश होगा। जीवन और बौद्धिक स्तर में कुछ सुधार आया है, नई पीढ़ी धर्म को समझने के लिए लालायित हैं और अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा भौतिकवाद और संस्कारों का अधःपतन यहीं कुछ सीमित होने के कारण धर्म से उन्हें जोड़ना सरल है।
प्रस्तुत पुस्तक पल्लीवालों के गरिमापूर्ण इतिहास से हमें जोड़ रही है। संक्षिप्त स्वरूप होने पर भी पल्लीवालों का इतिहास प्रगट करना बहुत बड़ी उपलब्धि है।
सुश्रावक भूषण 'मिशन जैनत्व जागरण' चलाकर प्रभु शासन की बहुत ही सुंदर सेवा कर रहे हैं। जब भी आप से मिलना होता था तब जैन शासन की सुलगती समस्याओं के बारे में घंटों तक बातचीत होती थी और समाधान के लिए कुछ न कुछ कर गुजरने की तत्परता हर बार दिखाई देती है। आम तौर पर जब पूरी युवा पीढ़ी पैसे के पीछे दौड़ रही है, तब ऐसे शासनसेवक युवाओं के दर्शन बड़ा सौभाग्य है। अनुरोध करुंगा भूषणजी को, इस तरह और जैन समाज के भी इतिहास को प्रकट करो, पल्लीवाल के पेथड़शा, नेमड़, कवि धनपाल इत्यादि का इतिहास भी उजागर करो। हमारा आशीर्वाद सदैव आपके साथ है।
दः धैर्यसुन्दर विजय का धर्मलाभ (कार्तिक कृष्ण तृतीया, हिण्डोन सिटी)
= श्री पल्लीवाल जैन इतिहास =