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________________ ॥ॐ ऐं नमः॥ प्रस्तावना... प्रभु वीर का धर्म 2550 वर्ष पूर्व किसी समाज की सीमाओं में सिमित नहीं था। जो पालन करे, उसका धर्म। इस व्याख्या को मुख्य बनाकर क्षत्रिय जैन धर्म अपनाते थे तो ब्राह्मण भी उसका स्वीकार करने में कहीं पीछे नहीं थे। बनिये भी जैन होते थे तो हरिकेशी मुनि चाण्डाल कुल में जन्म पाने पर भी जैनी दीक्षा ग्रहण कर सकते थे। प्रभु वीर के निर्वाण के कुछ साल बाद पू. आचार्य भगवंत श्री रत्नप्रभ सूरीश्वरजी म. ने ओसवाल वंश की स्थापना की उसके बाद बड़े-बड़े प्रभावक आचार्य भगवंतोंने बड़े-बड़े एक गोत्र के या अनेक गोत्र के (जिनमें परस्पर सामाजिक व्यवहार था) लोगों को प्रतिबोध देकर जैन बनाया। तब से धर्म के साथ समाज का संयोग हुआ। पू. 97 पूर्वधर आचार्य भगवंत श्री आर्यरक्षितसूरि महाराजा ने श्रावकों के कुल को नियत किया। तब से विशेष रूप से समाज के साथ धर्म की पहचान जुड़ गई। सन् 1971 में पू. आचार्य भगवंत श्री विक्रमसूरीश्वरजी म. छरि पालक संघ लेकर सम्मेतशिखर जा रहे थे तब इस पल्लीवाल क्षेत्र से गुजरे। बहुत सारे पल्लीवालों ने शायद प्रथम बार ही किसी जैन साधु-साध्वियों के दर्शन किये। हम सोच सकते है कि जिस पल्लीवाल जैन का इतिहास इतना भव्य था, वह न तो साधु भगवंतों एवं धर्म को जानते थे और न ही साधु भगवंत और श्रावक उनको जैन धर्मी के रूप में जानते थे। जैन धर्म के कुछ संप्रदायों का इस पल्लीवाल की धरा पर विचरण होने पर भी इन लोगों ने यहाँ के धर्म प्रेमियों को धर्म से न जोड़ते हुए सिर्फ अपने संप्रदाय से जोड़ने का काम किया था। जिस ज्ञाति में पेथड़शाह मंत्री जैसे सुकृतसागर श्रावक हुए थे, जिस ज्ञाति में जोधराजजी दिवान जैसे सत्ताधीश, बलवान और धर्मप्रेमी श्रावक हुए थे ऐसी श्वेताम्बर मूर्तिपूजक पल्लीवाल ज्ञाति अन्य संप्रदायों में कैसे प्रविष्ट हो गई? हकीकत कड़वी है लेकिन सच्ची है। श्वेतांबर मूर्तिपूजक संप्रदाय के साधु-साध्वियों का विचरण कुछ दशकों (या शतकों) तक न के बराबर रहा और स्वभाव से अत्यंत सरल ऐसी पल्लीवाल जाति के लोगों की सरलता का तथा तथाकथित संप्रदायों ने बहुत दुर्पयोग किया। सन् 1971 में इस क्षेत्र से गुजरने के बाद पू. आचार्य भगवंत् श्री विक्रम सूरीश्वरजी म. ने अपने साध्वीजी भगवंत् श्री सुभोदयश्रीजी म. को इस क्षेत्र में - 60 = श्री पल्लीवाल जैन इतिहास
SR No.007799
Book TitlePalliwal Jain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi, Bhushan Shah
PublisherMission Jainattva Jagaran
Publication Year2017
Total Pages42
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size15 MB
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