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________________ उपशाखाएँ एवं मुनि संघ संबंधी क्षेत्रों में सतत विहार करते थे एवं धर्मप्रचार करते थे। कालांतर में ये मुनि संघ संबंधी प्रदेश, मुख्य नगर अथवा मुख्य मुनिनायक की किसी विशिष्ट घटना के नाम से प्रसिद्ध हुए थे। इस तरह धीरे-धीरे 84 गच्छ बने। ___ "2" गुर्जरेश्वर कुमारपाल सोलंकी (सं. 1199 से 1229) ने संवत् 1207 में चंद्रावती होते हए अजमेर पर हमला किया। वापसी में अजमेर सपादलक्ष, मेडता एवं पाली में अपना साम्राज्य कायम किया और मालवा की तरफ प्रस्थान किया - "2" (प्रक. 36, पृ. राजावली सोलंकी वंश) ("2" सं. 1207 पाली का प्रथम विनाश (भंग) हुआ।) सप्तोतर-सूर्यशते विक्रमसंवत्सरे त्वजयमेरौ। दूर्गे पल्लीभंग त्रुटितं पुस्तकमिदमग्रहीत वदनु॥1॥ अखिलत् स्वयमत्र गवं श्रीमजिनदत्तसूरि शिषयभव। स्थिरचंद्राख्यो गालिरिह कर्मक्षयहेतुमात्यनः।।2।। अर्थात् सं. 1207 में पाली टूटा तब ‘पंचाशक सूत्र' भी खंडित हुआ जिसे आ. जिनदत्तसूरि के प्रशिष्य पं. स्थिरचंद्रगणि ने लिखा। ___ गुजरात की सेना ने अजमेर जीत लिया तो पालीनगर के निवासियों ने सोचा पाली से बाहर चले गये होगे। लेकिन गुजरात नरेश कुमारपाल ने प्रजा को सांत्वना दी होगी और पाली को पूर्व स्थिति में लाने का आश्वासन एवं ध्यान दिया होगा। उपरोक्त घटना के बाद गुजरातियों ने पाली में बसना शुरु कर दिया होगा ऐसी धारणा है। वह स्थल आज भी ‘गुजराती कटरा' के नाम से विख्यात् है। तत्पश्चात् इसी शताब्दि में पाली पर दूसरी बार संकट के बादल छाये। दिल्ली के बादशाह शाहाबुद्दीन गौरी ने भारत पर तीन बार आक्रमण किया था। उसने हिजरी संवत 574 (वि. सं. 1234) में गजनी से मुलतान होते हुए सीधे गुजरात पर आक्रमण किया और कुतुबुद्दीन ऐबक ने सं. 1254 में गुजरात पर फिर आक्रमण किया। (देखिये प्र. 44 दिल्ली के बादशाह) इस समय शाहाबुद्दीन या कुतुबुद्दीन ने पाली को ध्वस्त किया था। जिसमें मुस्लिम सेना ने ऐसा कहर ढाया कि पाली के ब्राह्मण, महाजन, वैश्य वगैरह हिन्दू श्री पल्लीवाल जैन इतिहास -27
SR No.007799
Book TitlePalliwal Jain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi, Bhushan Shah
PublisherMission Jainattva Jagaran
Publication Year2017
Total Pages42
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size15 MB
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