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________________ पल्लीवाल जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक ही हैं... तन्वाना सकला कलापमधिकं वर्याजंवालंकृतं लक्ष्मीवंशनटीव यं स्त्रितवती प्रेखद् गुरगांध्यासितम्। रंगान्नोतरणाभिलाषमकरोद् व्यावर्णतामागता, पल्लीवाल इति प्रसिद्धमहिमा वंशोऽस्ति सोडयंभूवि ॥ वंशः पल्लीवालोडस्ति सशाखः सत्पववान्। भूभृतोडप्युररीचक्रे येनौकच्छत्रिमात्मना।। यत्रानेकबुधा अनेककवयो धिष्ण्यानि भूयांस्यलं, चंद्रस्योपचयः कलंकविकलः सञ्जायते सर्वदा || वक्रः कोड़पि न दृश्यते न च गुरुमित्रोदये निष्प्रभः, पल्लीवाल जनान्वयो नवनभोलक्ष्मीं दधानोडस्ति वः ।। सच्छायपर्वो धनजैनधर्मः स्थानेषु सर्वेषु विशेषित श्रीः, वंश: प्रसिद्धो भूवि पल्लीवालाभिधोडस्ति भूमिभूति लब्धरूपः ।। (जैन पुस्तक प्रशस्ति संग्रह - प्र. 11, 27, सं. 1299 प्र. 9, 60) पाली - मारवाड़ में पाली नाम का बड़ा शहर है। प्राचीन गुजरात की राजधानी श्रीमालनगर संवत 1071 में टूटा, तब वहाँ के ब्राह्मण, महाजन आदि पाली में आकर बसे। इससे पाली विशेष रूप से आबाद हुआ और व्यापार का प्रमुख केन्द्र बना। यहाँ प्राचीन काल में 'पूर्णभद्र महावीर' का विख्यात् जैन तीर्थ था। पाली के व्यापारियों के सांभर, अजमेर, नागदा, पालनपुर एवं पाटण के साथ व्यापारिक संबंध थे। पाली शहर के निवासी और व्यापारी जहाँ भी जाते वहाँ अपनी पहचान ‘पल्लीवाल' या 'पालीवाल' के नाम से देते हैं। ‘“1” जिस तरह उपकेशनगर से उपकेशगच्छ और उपकेश जाति का जन्म हुआ वैसे ही पाली नगर से पल्लीवाल गच्छ एवं पल्लीवाल जाति का उत्थान हुआ।“1” “1” भारत के संघ को संघठित रहना बहुत जरुरी था । इसलिए भगवान पार्श्वनाथ एवं भगवान महावीर स्वामी की परंपरा के श्रमणों को मुख्य चार शाखाएँ, 26 श्री पल्लीवाल जैन इतिहास:
SR No.007799
Book TitlePalliwal Jain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi, Bhushan Shah
PublisherMission Jainattva Jagaran
Publication Year2017
Total Pages42
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size15 MB
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