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________________ पल्लीवाल जाति में जैन धर्म यह निश्चयात्मक नहीं कहा जा सकता कि पल्लीवाल जाति में जैन धर्म का पालन करना किस समय से प्रारंभ हुआ, पर पल्लीवाल जाति बहुत प्राचीन समय से जैन धर्म पालन करती आई है। पुरानी पट्टावलियों वंशावलियों को देखने से ज्ञात होता है कि पल्लीवाल जाति में विक्रम के चार सौ वर्ष पूर्व से ही जैन धर्म प्रवेश हो चुका था। इसकी साक्षी के लिए कहा जा सकता है कि आचार्य स्वयंप्रभसूरि ने श्रीमाल नगर में 90,000 मनुष्यों को तथा पद्मावती नगर के 45,000 मनुष्यों को जैन धर्म की शिक्षा व दीक्षा देकर जैन बनाये थे। बाद में आचार्य रत्नप्रभसूरि ने उपकेशपुर नगर में लाखों क्षत्रियादि लोगों को जैन धर्म की दीक्षा दी । इसी प्रकार आचार्य श्री ने मरुधर प्रांत में बड़े-बड़े नगरों की जगह छोटे-छोटे ग्रामों में भ्रमण कर करीब 14 लक्षधर वालों को जैनी बनाया था। विहार के समय जब पाली शहर, श्रीमाल नगर और उपकेश नगर के बीच में आया होगा तब आचार्यश्री वहाँ अवश्य पधारें होगें और वहाँ की जनता को जैन धर्म में अवश्य दीक्षित किया होगा। हाँ उस समय पल्लीवाल नाम की उत्पत्ति नहीं हुई होगी, पर पाली वासियों को आचार्य श्री ने जैन अवश्य बनाये थे। आगे चल कर हम देखते हैं कि आचार्यश्री की अध्यक्षता में एक श्रमण सभा का आयोजन किया था जिसमें दूर-दूर के हजारों साधु-साध्वियों का शुभागमन हुआ था। इस पर हम विचार कर सकते हैं कि उस समय पाली नगर में जैनियों की खूब आबादी होगी तभी तो इस प्रकार का बृहद कार्य पाली नगर में हुआ था। इस घटना का समय उपकेशपुर में आचार्य रत्नप्रभसूरि ने महाजन संघ की स्थापना करने के पश्चात् दूसरी शताब्दी का बतलाया है। इससे स्पष्ट पाया जाता है कि आचार्य रत्नप्रभसूरि ने पाली की जनता को जैन धर्म में दीक्षित कर जैन धर्म का उपासक बना दिया। उस समय के बाद तो कई श्रावकों ने जैन मंदिर बनाकर प्रतिष्ठा करवाई तथा कई श्रद्धा संपन्न श्रावकों ने पाली से शत्रूजयादि तीर्थों के संघ भी निकाले थे। इस प्रमाणों से इस निर्णय पर आ सकते हैं कि पाली की जनता में जैन धर्म श्रीमाल और उपकेश वंश के समय प्रवेश हो गया था, जैन शासन में साधुओं का जिस नगर में विशेष विहार हुआ उस ग्राम नगर के नाम से गच्छ कहलाये। उपकेशपुर के उपकेश गच्छ, कोरंट नगर के नाम के कोरंट गच्छ और पाली नगर के नाम से पल्लीवाल गच्छ उत्पन्न हुआ। इस गच्छ की पट्टावली देखने से पता चलता है कि यह गच्छ बहुत पुराना है। जो उपकेश गच्छ और कोरंट गच्छ के बाद तीसरा नंबर है। संवत् 329 पल्लीवाल गच्छ की उत्पत्ति का समय है। : श्री पल्लीवाल जैन इतिहास -25
SR No.007799
Book TitlePalliwal Jain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi, Bhushan Shah
PublisherMission Jainattva Jagaran
Publication Year2017
Total Pages42
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size15 MB
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