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पूर्णतः खाली कर दिया गया होता तो वैसी घटना का कुछ तो उल्लेख जोधपुर राज्य के इतिहास में मिलता, घटना बढ़ा-चढ़ाकर कविता में पिरोई गई है। पाली का त्याग करके ब्राह्मण दक्षिण पश्चिम दिशा में गये और वैश्य पूर्व-उत्तर दिशा में, यह ठीक भी है। पल्लीवाल वैश्य आज भी मारवाड़ के उत्तर पूर्व में आये हुए अलवर, जयपुर, भरतपुर, ग्वालियर राज्यों तथा संयुक्त बीकानेर राज्यों और उनके निकटवर्ती भागों में पाये जाते हैं। वैसे तो दोनों वर्गों के थोड़े थोड़े घर तो राजस्थान की एवं मालवा, मध्य भारत की सर्वत्र भूमियों में पाए जाते हैं जो धीरे-धीरे व्यापार, कृषि, धंधा आदि की दृष्टियों एवं अन्य सुविधाओं से आकर्षित होकर जा बसे हैं। मेवाड़ में पल्लीवाल ब्राह्मणों को नन्दवाना बोहरा भी कहते हैं।
पाली और पल्लीवाल जाति का जैसा परस्पर संबंध पाया जाता है। वैसा ही पल्लीवाल पल्लिकीय गच्छ का भी इन दोनों के साथ पाया जाता है। पल्ली गच्छ की स्थापना पाली नगर में भगवान महावीर के पट्ट पर 17वें आचार्य यशोदेवसूरिजी द्वारा सं. 329 वैशाख सु. 5 को हई। उक्त संवत् बीकानेर के बड़े उपाश्रय के ज्ञान भंडार में प्राप्त एक अप्रकाशित पल्लीवाल गच्छ पट्टावली में जो श्री नाहटाजी को प्राप्त हुई थी और जिसकी प्रतिलिपि श्री आत्मानन्द अर्ध शताब्दी ग्रंथ में श्री नाहटाजी ने अपने लेख ‘पल्लीवाल गच्छ पट्टावली में दी है। उक्त संवत् कहाँ तक ठीक है, प्रमाणों के अभाव में कुछ निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। इतना अवश्य प्रमाणित आधार पर लिखा जा सकता है कि पल्लीवाल गच्छ का अब तक प्राप्त प्राचीनतम मूर्ति लेख पाली में प्राप्त वि. सं. 1144, 1151 और 1201 है। उक्त लेखों में पल्लिकीय प्रद्योतनसूरि का नाम स्पष्ट है। प्राचीनता और नाम साम्य के कारण पल्लीवाल गच्छ का पाली और पल्लीवाल जाति से गहरा संबंध माना जा सकता है, परंतु यह मानना कि पल्लीवाल जाति पल्ललीवाल गच्छीय आचार्य, साधु, मुनियों की ही अनुरागिनी अथवा इनको ही गुरु रुप से मानने वाली रही, ठीक नहीं। उपकेश गच्छाचार्य द्वारा प्रतिबोधित पल्लीवाल जाति में भी कई गच्छ मान्यतायें पायी जाती है। और यह पल्लीवाल जाति पुरुषों द्वारा प्रतिष्ठित मूर्ति, मंदिर लेखों व प्रशस्तियों से भली भांति स्पष्ट है। तीनों में घनिष्ठ संबंध था, यह वस्तुतः मान्य है। पल्लीवाल गच्छाचार्यों द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमायें और मंदिर अन्य जैन जातियों जैसे ओसवाल, श्रीमाल आदि के प्रकरणों, वृत्तों में भी उल्लेखत प्राप्त होते
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= श्री पल्लीवाल जैन इतिहास =