________________
उत्तरोत्तर शताब्दियों के साथ-साथ संख्या में अधिकाधिक पाये जाते हैं। अतः उनका विश्रुति में आना विक्रम की आठवीं शताब्दि और उनके तदानन्तर माना जाता है। इसी प्रकार पल्लीवाल प्राचीनतम लेख बारहवीं शताब्दि का वि. सं. 1144 पाली में प्राप्त हआ है। इस पर भी यह कहना ठीक नहीं है कि पल्लीवाल जाति की उत्पत्ति इसी के समीपवर्ती या इसी शताब्दि में ही हुई हो।
आधुनिक प्रायः समस्त जैन जातियों का उद्भव राजस्थान में हआ है। राजस्थान से ये फिर व्यक्ति, कुल, संघ के रूप में व्यापार धंधा, राजकीय नियंत्रणों पर और राज्य परिवर्तन, दुष्काल, धर्म संकट एवं अर्थोपार्जन के कारणों पर स्थान परिवर्तित करती रही है और धीरे-धीरे विक्रम की बारहवीं शताब्दी तक समस्त जैन जातियाँ अपने मूल स्थान से छोटी-बड़ी संख्या में निकलकर कच्छ, काठियावाडा, सौराष्ट्र, गुर्जर, मालवा, मध्यप्रदेश आदि भागों में भी पहुंच गई है। जिसके प्रचुर प्रमाण मूर्ति लेखों से, ग्रंथ प्रशस्तियों से एवं राज्यों के वर्णनों से ज्ञात होते हैं। पल्लीवाल जाति भी अन्य जैन जातियों की भाँति कच्छ, काठियावाड़, सौराष्ट्र और गुर्जर में बारहवीं और तेरहवीं शताब्दि तक और ग्वालियर, जयपुर, भरतपुर अलवर, उदयपुर, कोटा, करौली, आगरा आदि विभागों के ग्राम, नगरों में विक्रम की चौदहवीं और पंद्रहवीं शताब्दी पर्यंत कुछ कुछ संख्या में और सोहलवीं एवं सतरहवीं शताब्दि में भारी संख्या में उपरोक्त स्थानों में व्यापार धंधे के पीछे पहंची और यत्र-तत्र बस गई। इसकी पुष्टि में इस लघु इतिहास में वर्णित पल्लीवाल जातीय बंधुओं द्वारा उक्त स्थानों में विनिर्मित जैन मंदिर ग्रंथ प्रशस्तियाँ और प्रतिष्ठित मूर्तियाँ प्रमाणों के रूप में लिये जा सकते हैं।
पाली से निकलकर ज्यों-ज्यों कुल, व्यक्ति अथवा संघ अलग-अलग प्रांतों में, राज्यों में जा जा कर बसते गये, त्यों त्यों वहाँ के निवासियों के प्रभाव से संपर्क व्यवहार से, मत परिवर्तित करते गये और आज यह जाति जैन धर्म की सभी मत और संप्रदायों में ही विभाजित नहीं, वरण कुछ पल्लीवाल वैश्य वैष्णव भी हैं। जैसा अन्य प्रकरणों से सिद्ध होता है। इस जाति के प्राचीनतम उल्लेख श्वेताम्बरीय हैं और वे श्वेतांबर ग्रंथों ज्ञान भंडारों और मंदिरों में प्राप्त होते हैं। ___ मूल स्थान से सर्व प्रथम कौन निकला और कब निकला और वह कहाँ जा कर बसा यह बतलाना अत्यंत कठिन है। फिर भी जो कुछ प्राप्त हुआ है वह निम्न
है।
यह सुनिश्चत है कि पल्लीवाल ब्राह्मण कुल वहाँ कृषि करते थे। इस प्रकार
= 16
=श्री पल्लीवाल जैन इतिहास =