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________________ वाला अथवा पाली रखने वाला कृषक और व्यापारी पल्लीवाला-पालीवालापल्लीवाल-पल्लिकीय कहलाता हो और ऐसे पल्लीवालों की अधिक संख्या एवं बस्ती के पीछे वह नगर ही पाली नाम से विद्युति में आया हो। ऐतिहासिक प्रमाणों के अभाव से मैं इन अनुमानों पर बल देकर नहीं कह सकता परंतु पल्ली और पाली नामक माप की नाम साम्यता और पाली में पाली माप का प्राचीन समय से होता रहा प्रचार अवश्य विचारणीय है। जो कुछ हो-चाहे पल्ली- पालीवाल के पीछे नगर का नाम पाली पड़ा हो और चाहे नगर में पाली (माप) का प्रयोग होने से नगर का नाम पाली पड़ा हो और पाली-पल्ली माप का प्रयोग करने वाले कृषक, व्यापारी पल्लीवाल-पालीवाल कहलाये हों। इन अटकलों से कोई विशेष प्रयोजन नहीं। विशेष संभव यही है कि यह छोटा ग्राम हो और पीछे बड़ा नगर बन गया हो। प्रयोजन मात्र इतना ही है कि पाली से पल्लीवाल जाति का निकास मानना अधिक तर्कसंगत प्रतीत होता है और यह प्रसंग अनेक कविता, दंत कथा, जन श्रुतियों में आता है और प्राचीन इतिहास, पुरातत्व के प्राप्त प्रमाणों पर जब तक कि अन्य स्थल के पक्ष में प्रबल प्रमाण न मिल जाय, पाली ही पल्लीवाल जाति का उत्पत्ति स्थान माना जाना चाहिए। ___ इसी पाली नगर से पल्लीवाल गच्छ की उत्पत्ति मानी जाती है। पल्लीवाल गच्छ की उत्पत्ति का अन्य स्थान अभी तक तो किसी प्राचीन, अर्वाचीन विद्वान ने नहीं सुझाया है। पाली को ही उसका उत्पत्ति स्थान मान लिया गया है। पल्लीवाल गच्छ और पल्लीवाल जाति का मूल में प्रतिबोधक और प्रतिबोधित का संबंध रहा है। इस पर भी पल्लीवाल जाति का मूल उत्पत्ति स्थान पाली ही ठहरता है। पल्लीवाल गच्छ विशुद्धतः श्वेतांबर गच्छ है। पीछे से पल्लीवाल भिन्न गच्छ, संप्रदाय, मत अथवा वैष्णव धर्म अनुयायी बन गये हों, तो भी उनके पल्लीवाल नाम के प्रचलन में उससे कोई अंतर नहीं पड़ सकता। पल्लीवाल जाति की उत्पत्ति भी अन्य जैन वैश्य जातियों के साथ साथ ही हुई मानी जा सकती है। वैसे तो ओसवाल, पोरवाल और श्रीमाल जातियों की उत्पत्ति संबंधी कुछ उल्लेख भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात् प्रथम शताब्दि में ही होना बतलाया है, परंतु पल्लीवाल गच्छ पट्टावलि जो बिकानेर बड़े उपाश्रय के बृहत् ज्ञान भंडार में हस्त लिखित प्राप्त हुई है उनमें 17 वें पाट पर हुए श्री यशोदेवसूरिजी ने वि. सं. 329 वर्ष वैशाख सुदी 5 प्रहलाद प्रतिबोधिता श्री पल्लीवाल गच्छ स्थापना लिखा है। जैन जातियों के अधिकतर जो लेख प्रतिमा, ताम्र पत्र, पुस्तकें प्राप्त हैं वे प्रायः नौंवी और दसवीं शताब्दि और अधिकतर = श्री पल्लीवाल जैन इतिहास 150
SR No.007799
Book TitlePalliwal Jain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi, Bhushan Shah
PublisherMission Jainattva Jagaran
Publication Year2017
Total Pages42
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size15 MB
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