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________________ ७६ श्रुतदीप-१ हिवै तीजो व्रत विराध्यो हवै। ते किम ? स्वामि अदत्त १ जीव अदत्त २ तीर्थंकर अदत्त ३ स्वकीय गुरु अदत्त $४ ए चतुर्विधि अदत्त लीधो हुवै। त्रिण, छार, डगल, पाषांण, थंडिला भूमि 'अणुजाणइ जस्सवगहो होत्ति' एहवं वचन कह्यां विना संग्रहया हुवै। साधु-साधवी-गृहस्थना राछ, पीछ, पातरा, लूगडा, पाटि, पाटला, अन्न, पाणी, ओषध प्रमुख अणकहयां वपराया हुवै। इत्यादिक प्रकारै त्रीजो व्रत विराध्यौ हुवै इणभव परभव जातां (जाणतां अजाणतां) ते मिच्छा मि दुक्कड॥३॥ हिवै चोथो व्रत विराध्यो हुवै ते किम ? साधवी मथेणनी(?) बीजी पिण कोइ भेखधारणी, कुंवारी, वुधवा, सूहव(वा), वैश्या, स्त्रीसुं, कर्मविशेष सराग बात कीधी, संघट्टो कीधो, आलिंगन दीधो हुवै। जाणतां अथवा स्वप्न मांहे इतरा थोक (?) कीधा हुवै। वली नव ब्रह्मचर्य वाडि भांजी हुवै। स्त्रीपशु संसक्त वसति भोगवी हुवै।१ स्त्रीसुं सराग वात कीधी हुवै। २ बि घडी मांहि स्त्रीने आसण बेठा हुवै। ३ स्त्रीनां अंगोपंग कुच-कक्ष-उदर प्रमुख सरागपणै जोया हुवै। ४ कुड्यनै आंतरै स्त्री-पुरुष काम क्रीडा करतां दीठा, सांभल्या हुवै। ५ गृहस्थावास मांहे काम क्रीडा करी हुवै ते संभारी हुवै। ६ प्रणिताहार= घीना चूवता कवल सरस आहार लीधा हुवै। ७ शरीरनी विभूषा= फूटरा दीसवा भणी अंगोल कीधी हुवै, मूंछ कतरावी हुवै, कांने पट्टा रखाया हुवै। ८ सखरा वस्त्र, केसरिया वस्त्र सखरी कांबल पहिरीने वरणांगी कीधी हुवै। ९ मकार चकार भकार प्रमुख गाल दीधी हुवै। देवांगणारी वंछा भोग मनमै धारी हुवै। इत्यादि प्रकार करी चौथा व्रतनी विराधना कीधी हुवै इणभव परभव जातां (जाणतां अजाणतां) ते मिच्छा मि दुक्कडं॥४॥ हिवै पांचमो व्रत विराध्यो हुवै। ते किम ? थिवर कल्पीना चवदै उपगरणथी कारण विना मूर्छा करी अधिका उपगरण वस्त्र, पात्र, डांडा, डंडासणा, दोहणा, कुंडा, ढांकणी, प्रमुख राख्या हुवै। लोभने बाह्य द्रव्य राख्या हुवै। लोभनें मोती, मांणक, मुंगीया, छुरी, कतरणी, नहरणी, सूइ, नखलो, पाछणो, अरगतीसार, चींपडी, चीपीयो, वाटको वाटकी, थाली, धातुरी सिली, त्रांबारी स्याहीरी डबी, मसरी, वावरी, प्रमुख सात धातुरो कोइ राछ पीछ राख्यौ हुवै। पोथी पाना प्रमुख धर्मोपगरण न्यानको उपगरण छै तो पिण ते ऊपर ममता अधिकी कीधी हुवै। इत्यादि प्रकार करी पांचमा व्रतनी विराधना कीधी हुवै इणभव परभव जातां (जाणतां अजाणतां) ते मिच्छा मि दुक्कडं॥५॥ हिवै छठ्ठो रात्रिभोजन विरमण व्रत विराध्यो हुवै ते किम ? असन १ पान २ खादिम ३ स्वादिम ४ चतुर्विध आहारनो रात्रिं परिभोग कीधो हुवै। लगवगती वेला आहारपाणी कीधो हुवै। राति विहरीने दिने खाधो हुवै। संनिधी राखी खाधो हुवै। झोली ठाम खरडया राख्या हवै। गोचरी पडिकमतां चोविहार न कीधो हवै। करीनै भागो हवै। इत्यादि प्रकार करी छठा व्रतनी विराधना कीधी हुवै इणभव परभव जातां (जाणतां अजाणतां) ते मिच्छा मि दुक्कडं॥६॥ ॥इति संजम विराधना मिथ्या दुःकृ(ष्कृ)त दान।। अथ दु:कृ(ष्कृतगर्दा आहारना वै(बै)तालीस दूषण लागा हुवै। ते किम ? साधुनै अर्थ सचित्त वस्तु अचित्त कीधी हुवै ते आधाकर्मी कहीजै १ ते पहिलो। लाडूनो चूर्ण प्रमुख फासू (फ) हुतो अनै गुडादिक तवावीनै संस्कार कीधो ते उद्देसक कहीजै २। जे आधाकर्मी आहार ते अवयव मिश्रित ते पूतकर्म कहीजै ३। जे साधु असाधु प्रमुख निमित्त नीपायो ते मिश्र कहीजै ४। साधु निमित्ते दूध, दही प्रमुख राखी मुंक्यौ ते थापना कहीजै ५। काज क्रिया वर उपगरण साधु निम(मि)त्त पहिलो पछै करै ते आहार प्राभूत (प्राभृत) कहीजै ६। अंधारै आहार छै अनै गोख बारी प्रमुख साधु निमत्ते उघाडी उजवालो करनै आहार द्यै ते प्रादुःकरण कहीजै ७। द्रव्यादिक देर मोल आंणीने द्ये ते क्रीतक कहीजै ८। साधु निमित्ते ओछीने आणी द्यै ते पाडिच्च (पामिच्च) कहीजै ९। साधु निमित्ते कोद्रव प्रमुख देईनै शाल प्रमुख आणीने विहरावै ते परिवर्तित कहीजै १०। घरथी उपासरै आणीने द्यै ते अभ्याहृत कहीजै ११। गोबर प्रमुख करी कोठी, कलसो प्रमुख भाजन मुद्रित कीधो छै ते मुद्रा उखेलने ते उद्भिन्न कहीजै १२। मालादिकनै विषये उंचो आहार छै ते नीसरणी प्रमुख करी उतारने द्यै ते मालाहृत कहीजै १३। दासदासीना हाथ प्रमुखथी खोसी ते उछेद
SR No.007792
Book TitleShrutdeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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