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________________ यति अंतिम आराधना ७५ हुवै। दावानल लगाया हुवै। चकमकसुं अथवा आक अरणीसुं अग्नि पाडी हुवै। वीजली दीवा प्रमुखनी उजेही लगाइ हुवै। इत्यादिक प्रकारै करी अग्निकाय जीवरी विराधना कीधी हुवै इणभव परभव जातां (जाणतां अजाणतां ) ते मिच्छा मि दुक्कडं ॥ ३॥ वली वायुकाय विराध्या हुवै। ते किम ? वींजणासुं छेहडासुं वायरो घाल्यो हुवै। फूंक मारी हुवै। उघाडै मुंहडै बोल्या हुवै। वस्त्रादिक झटकाया हुवै। इत्यादिक वायुकाय जीवरी विराधना कीधी हुवै इणभव परभव जातां (जाणतां अजाणतां) ते मिच्छा दुक्कडं॥४॥ वली प्रत्येक वनस्पति साधारण वनस्पति स्वादै खाधी हुवै। फल, फूल, पान हरी त्रोड्या हुवै। नील, फूलण, सेवाल विराध्या हुवै। जडीबुंटी त्रोडी काढी हुवै। आक भांजी आकदूध लीधो हुवै। धातुर्वाद पारो कमावतां उषधीयांरा रसरी पुट दीधी हुवै। इत्यादिक प्रकार करी वनस्पति जीवांरी विराधना कीधी हुवै इणभव परभव जातां (जाणतां अजाणतां) ते मिच्छामि दुक्कडं ॥ ५ ॥ हिवै बेंद्री विराध्या हुवै। ते किम ? | अणगल्यौ पांणी वार्यो हुवै। जुलाब लेइ क्रमगिंडोला पाड्या हुवै। अंगउपंगै जोकदराइ (जडो देवरावी) हुवै। पग हेठ अलसीया, चूडेलि गाडर, प्रमुख पीडाणा होवै ( हुवै)। पग हेठ आया हुवै। वाला टंकाया हुवै। इत्यादिकें करी बेंद्री जीवनी विराधना कीधी हुवै इणभव परभव जातां (जाणतां अजाणतां) ते मिच्छा मि दुक्कडं॥६॥ हिवै तेंद्री जीवना भेद कहै छै ते किम ? मांकण पाटमांहेथी काढ्या हुवै। दूहाणा हुवै। जूं लीख काढी हुवै। धूपदराणी हुवै। छपीलो (?) गमाड्यो हुवै। कीडी, मकोडा, उदेही, घीवेलि, ईली, गदहीया, कुंथुवा, जउआ, पग हेठ आया हुवै। इत्यादि प्रकारै करी तेंद्री जीव विराध्या हुवै इणभव परभव जातां (जाणतां अजाणतां) ते मिच्छा मि दुक्कडं ॥७॥ हिवै चौरिंद्री जीव विराध्या हुवै। ते किम ? | माखी, डांस, माछर डील लागा उडाया हुवै। हरताल वाटतां माखी मूइ हुवै। ठांम रंगतां रोगन, अलसी, तैल उपर माखी, कूत, माछर, पतंगीया प्रमुख जीव मूआ हुवै। कंसारी, भमरा, तीड, विछू, प्रमुख दुहव्या हुवै। इत्यादिकै करी चौरेंद्री जीव विराध्या हुवै इणभव परभव जातां (जाणतां अजाणतां) ते मिच्छा मि दुक्कडं॥८॥ हिवै पचेंद्री जीव विराध्या हुवै। ते किम ? कूता, बिल्ली, गाय, भैंस, घोडा, उंट (ऊंट), प्रमुखनौ घा(डउ) उ प्रहार घाल्यौ हुवै। चिडकला, काग, पारेवा प्रमुख उडाया, बीहाव्या, त्रासव्या हुवै। एहना माला पाड्या हुवै। साप अजगर उलारी ख्या रूपा, चिडी, हिरण प्रमुख डावा जीमणा आण्या हुवै। ऊंट, घोडा, बलद, खर, हाथी ऊपर चढ्या हुवै। मांदा असकत? थकां अथवा इयां उंठ(ऊंट) प्रमुख ऊपर उपगरण पोथी प्रमुख भार घाल्या हुवै। ओषध देइ गर्भ पाड्या हुवै। मूत्र, विष्टा, श्लेषम, वात, पित्त, रूधिर, वीर्य, प्रमुख अंतर्मुहूर्त मांहे वोसराव्या नहीं हुवै। असंख्याता समूर्च्छिम पंचेंद्री जीव अपर्याप्ता ऊपना हुवै। क्रोधें करी चेला गुरुभाई अनेरा यती, गृहस्थनें चुंहटी, डोरा बूसट, टुंबो, चपेट, डांडा मार्या हुवै। वली इर्या सोझी नहीं हुवै। राति चाल्या हुवै। पच्चखांण करी सुंस लेइ भांग्या हुवै। आरंभ-समारंभ करी प्राणातपात करी पहिलो व्रत विराध्यो हुवै। इणभव परभव (जाणतां अजाणतां) ते मिच्छा मि दुक्कडं ॥ १ ॥ हिवै बीजो व्रत विराध्यौ हुवै। ते किम ? क्रोध, मान, माया, लोभ, भय, हास्य, रति, अरति, करी; मृषा भाषा करी सावध भाषा बोली हुवै। पारकी निंदा कीधी हुवै । उत्सूत्र बोल्या हुवै। तूं जाव तूं आव ए काम करि इत्यादि अवधारणी भाषा बोली हुवै। आंधानै आंधो कहयो, कांणानें कांणो कहयो, कोढीयाने कोढीयो कह्यो, देवालीयाने देवालीयो, चोरनै चोर, जारने जार, इत्यादि वचने करी परनै असाता ऊपजावी ते साची भाषा पिण बोली हुवै। वली मृग गया पूर्व दिस, आहेडी पूछयां ह्यो पश्चिम गया”। मलेछादिक देहरो उपासरो पाडिवा आवै छै, यतीनै मारवा आवै छै, पूछै "अठै देहरो उपासरो जती छै ?" ति वारै कहै “नही छै” एहवै कारणें ए जूठ बोल्यो हुवै। इत्यादि प्रकारै करी बीजो व्रत विराध्यौ हुवै इणभव परभव जातां (जाणतां अजाणतां) ते मिच्छा मि दुक्कडं॥२॥ १. अशक्त
SR No.007792
Book TitleShrutdeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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