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________________ श्रुतदीप-१ देवताना च्यार भेद कहै छै - भवनपति १ व्यंतर २ ज्योतिषी ३ वैमानिक ४। तेहनो जघन्य दसहजार वरसनो आउखो। उत्कृष्टो तेतीस सागरोपम आउखो। सात हाथ देहमान। च्यार लाख जीवा योनि। देवताने मंत्र, जंत्र, तंत्रै करी आकर्षण कीधा हुवै, दुख दीधा हुवै, दीसता नहीं छै ते भणी छतां अछता थाप्या हुवै, इणभव परभव जातां (जाणतां अजाणतां) ते मिच्छा मि दुक्कड॥११॥ तिर्यंचना पांच भेद। ते कुण कुण ? जलचर ते माछला, काछवा प्रमुख। तीयां समूर्छिम गर्भिज बिहुरो उत्कृष्टो [३ब] पूर्वकोडिवर्षनो आऊखो। हज्जार योजन स्वयंभूरमणना माछला प्रमुखनो देहमान। थलचर ते कुण ? सींह, वाघ, चीतरा, अष्टापद, हाथी, घोडा, खचर, ऊंट, बलद, गाय, खर, भेंस, छाली, हिरण, रोझ, ससीया, सूयर, रीछ, सांवर, कूतरा, सियाल, बिल्ली प्रमुख। ते युगलीयानो तीन पल्योपम उत्कृष्टो आऊखो। तीन कोस देहमान अने संख्याता आऊखाना धणी। तियांरो पूर्वकोड उत्कृष्टो आऊखो। छ कोस देहमान। खेचर = पंखी। ते कुण कुण ? हंस, बगला, सारस, सींचाणा, सामली, गृध, काग, गूघू, कबूतर, चिडकला, नीलटांस, सूवटा, मोर प्रमुख। तिणांरो पल्योपमरो असंख्यातमो भाग उत्कृष्टो आउखो। धनुषपृथक्त्व देहमान। उरपरसर्प ते कुण कहियै ? स्वालै = सर्प प्रमुख। तिणांरो पूर्वकोडि उत्कृष्टो आउखो। हजार जोजन देहमान। भुजपरसर्प ते कुण ? गोह, नउलीया, गिलोइ, बांभणी प्रमुख तिणांरो पूर्व कोड उत्कृष्टो आउखो। कोस प्र(पृ)थक्त्व देहमान। इयां पांचारी च्यार लाख योनि। इयां तिर्यंचानें छेदन, भेदन, कदर्थन, अंगावयवकतन, नासाविंधन, अतिभारारोपण, पृष्ट(ष्ठ)गालन, डांभदान, कर्कसप्रहारदान, चारपांणीनिषेध, विस्मरण, तापन, पीडन, व्यथोत्पादनादिके करी विराधना कीधी हुवै इणभव परभव जातां (जाणतां अजाणतां) ते मिच्छा मि दुक्कड॥१२॥ हिवै मनुष्यना भेद कहै छै - त्रिण सय तिडोत्तर ३०३। ते किम ? पेंतालीस लाख जोजन मनुष्य क्षेत्रमांहे पांच भरत (५) पांच एरवत (५) पांच महाविदेह (५) ए पनरै कर्मभूमि। पांच हेमवत (५) पांच एरन्नवत (५) पांच हरिवर्ष (५) पांच रम्यक (५) पांच देवकुरु (५) पांच उत्तरकुरु (५) ए तीस 3 छप्पन अंतरद्वीप एक सो एक (१०१) गर्भ [४] ज पर्याप्ता, एक सो एक (१०१) गर्भज अपर्याप्ता, एक सो एक (१०१) समूर्छिम ए सर्व भेला कीधां त्रिणसयतीन भेद (३०३)। ते केइ अनार्य, केइ ब्राह्मण, केइ क्षे(क्ष)त्रिय, केइ वैश्य, केइ शूद्र, केइ राजा, केइ रंक, केइ दृष्ट, केइ अदृष्ट, केइ ज्ञात, केइ अज्ञात, केइ श्रुत, केइ अश्रुत, केइ स्वजन, केइ परजन, केइ शत्रु, केइ मित्र, केइ प्रत्यक्ष, केइ परोक्ष, अनेक भेद। ते युगलीया मनुष्य छै तिणांरो तीन पल्योपमरो उत्कृष्टो आउखो। तीन कोस देहमान। बीजा मनुष्यारो पूर्वकोडि उत्कृष्टो आउखो। पांचसै धनुष देहमान। इयां मनुष्याने ताडन, तर्जन, छेदन, भेदनादिकै करी पीडा करी हुवै अथवा अभिहया वत्तिया' इत्यादिक दश प्रकारै करी विराधना कीधी हुवै इणभव परभव जातां(जाणतां अजाणतां) ते मिच्छा मि दुक्कड॥१३॥ अथ संयम विराधना मिथ्यादुष्कृतम्। तत्र पञ्चमहाव्रतानि रात्रिभोजनविरमणसहितानि गृहीत्वा विराधितानि भवन्ति। कथम् ? तथाहि - सचित्त पथवी, माटी, मरड, खडी, खांणि, खणी हवै अथवा ए ऊपर पग आया हवै। सचित्त लुण सेंधव खा[धा]धा हवै अथवा उसामांहे घाल्या हुवै। वली सचित्त हरीयाल, हींगलू प्रमख वांद्या हुवै। नगरमांहे पेसतां पग न पूंज्या हुवै। इत्यादिक प्रकार करी पथवीकाय जीवांरी विराधना कीधी हवै इणभव परभव जातां (जाणतां अजाणतां) ते मिच्छा मि दक्कडं॥१॥ ___ सचित्त पाणी अथवा मिश्र पाणी पीयो हुवै। सचित्त पाणीसुं वस्त्र-डील धोया हुवै। नदी वा(ना)हला लंघ्या हुवै। वरसतै मेहमै चाल्या हुवै। धुंहरमाहे अंगोपंग हलाया हुवै। इत्यादिकें करी अप्पकायरी विराधना कीधी हुवै इणभव परभव जातां (जाणतां अजाणता) ते मिच्छा मि दुक्कड।।२।। वली सचित्त अग्निका [४ब] य आभडतै विहस्यौ हुवै। अंगीठी कीधी हुवै। कोउ ताप्या हुवै। दीवा कीधा हुवै। आग उलंगी १. अभिहया वत्तिया लेसिया संघाइया संघट्टिया परियाविया किलामिया उद्दविया ठाणाओ ठाणं संकामिया जीवियाओ ववरोविया।
SR No.007792
Book TitleShrutdeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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