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________________ यतिअंतिमआराधना ७३ हिवै वायुकायना भेद कहै छै ते कुण कुण ? गुंजवात, उद्भ्रामकवात, उत्कालिकावात, मंडलवात, महावात, शुद्धवात, भूतेलियो, वातोलियो, कोरण, वाउलि, धनुवात, तनुवात प्रमुख। वायुकायनो तीन हजार वरसरो उत्कृष्टो आउखो, अंगुल प्रमाण आकास भागवर्त्तिमांहे असंख्याता जीव ते लीख सरीखी काया करै तो जंबूद्वीपमाहे न मावै। सात लाख जोनि। ते वायुकाय आंरभादिकें करी विराधना कीधी हवै इणभव परभव जातां ते मिच्छा मि दक्कड॥४॥ हिवै वनस्पतिकायरा भेद कहै छै। ते वनस्पति बिहुं भेदै- प्रत्येक अने साधारण। ते प्रत्येकना अनेक भेद ते कुण कुण ? आंबा, नींबू, कदंब, असोग, नाग, पुन्नाग, धव, खदिर, वड, पीपल, करीर, बोरटी, खेजडा, फोग, आक, धत्तूरा, केला, खडतृण, हरीवेलि, पान, फूल, बीज, छाल, कमल प्रमुखा। प्रत्येक वनस्पतिरै मूलमांहै असंख्याता जीव।१। कंदमाहे असंख्याता जीव।२। संधमांहे असंख्याता जीव।३। छालमांहे असंख्याता जीव।४। शाखमांहे असंख्याता जीवा५। पडिशाखामांहे असंख्याता जीव।६। पानमांहे एक जीव।७। फूलमांहे अनेक जीव८। फलमांहे जितरा बीज तितरा जीव।९। सिंघोडा बि जीव। तेह हजार जोजन झाझेरा पद्मद्रहादिकमें कमल छै तेहनो देहमान दस हजार वरसनो उत्कृष्टो आउखो। दश लाख योनि। प्रत्येक वनस्पतिनी आरंभादिकें करी विराधना कीधी हुवै इ [२] णभव परभव जातां(जाणतां अजाणतां) ते मिच्छा मि दुक्कडं॥५॥ हिवै साधारण वनस्पति अनंतकाय। तेहना अनेक भेद। कंदमूल, अंकुर, किसलय, सेवाल, भूफोड, पांचवरणी फूगण, गाजर, पंचांग, मूला, सूरण, लसण, तेज, आदो, थोहर, कुवारपाठो, गुग्गल, गिलोय, मोथ, लीली, हलदर, रत्तालू, पिंडालू प्रमुख। एह वनस्पतिमाहे सूइरा अग्रभागमाहे अनंताजीव जघन्य अने उत्कृष्ट पिण अंतर्मुहुर्त्तनो आउखो, चवदै लाख जीवयोनि। एह साधारण वनस्पतिनी आरंभादिके करी विराधना करी हुवै इणभव परभव जातां(जाणतां अजाणतां) ते मिच्छा मि दुक्कडं॥६॥ हिवै बेइंद्री जीव कहै छै। जेहनै स्पर्शन अने जीभ ए बे इंद्री ते संख, कवडा, गंडोला, जलोक, अलसीया, लद्द, कृमिया, पुरागाडर, चूडेल, तंबोलिया, वाला, काष्टकीट, चंदणग जीवविशेष प्रमुख अनेक भेद। बारै जोजन संख प्रमुखरो देहमान, बारै वरस उत्कृष्ट आउखो, दोय लाख योनि। बेइंद्री जीवनी आरंभादिकें करी विराधना कीधी इणभव परभव जातां(जाणतां अजाणतां) ते मिच्छा मि दुक्कड॥७॥ __ हिवै तेइंद्री जीव कहै छ। जे जीवनें स्पर्शन, रसन, घ्राण ए तीन इंद्री ते तेंद्री। कुण ? कानसिलायो, माकण, जूं, लीख, कीडी, मक्कोडा, उदेही, घीवेल, ईली, चर्मजू, गोंगीडा, जात, गदहीया, चोरकीडा, गोबरना कीडा, धानरा कीडा, कुंथुवा, गोपालिका, चिंचड, ईलका, ममोला, जलौक प्रमुख। तेइंद्रीनो उगणपचास दिनरो उत्कृष्टो आउखो, त्रिण कोस काफानसलाया प्रमुखो देहमान, दोय लाख जोनि। एह तेइंद्री जीवनी आरंभादिके करी विराधना कीधी हवै इणभव परभव जातां(जाणतां अजाणतां) ते मिच्छा मि दुक्कड॥८॥ हिवै चौरेंद्री जीव कहै छ। जे जीवनें स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु ए च्यार इंद्री ते चौरींद्री। ते कुण कुण ? वीछू, ढिकुण, भमरा, भमरी, तीडी, माखी, डांस, मसक, भणहणा, कूता, पतंगीया, कंसारी, खडमांकडी, गोगा, गावडी प्रमुख। तेहनो छ मासनो उत्कृष्टो आउखो, एक योजन प्रमाण भमरादिकनो देहमान, दोय लाख जोनि। ए चौरिंद्री जीवनी आरंभादिके करी विराधना कीधी हवै इणभव परभव जातां(जाणतां अजाणतां) ते मिच्छा मि दक्कडं॥९॥ हिवै पंचेद्रीना भेद कहै छै। जेहने स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु, श्रोत्र ए पांच इंद्री जेहनै(जेहने) ते पंचेद्री। तेहना च्यार भेदनारकी, देवता, मनुष्य, तिर्यंच ४। नारकीना चवदै भेद स्वेतांवरकारी सात परजाप्ता सात अपरजाप्ता। ते नारकीनो तेतीस सागरनो उत्कृष्टो आउखो। दस हजार वरसनो जघन्य आउखो। पांचसै धनुष देहमान उत्कृष्टो। चार लाख नारकीनी योनि। ते नारकी जीवांने परमाहम्मी देवता करी छेदन, भेदन, ताडन, तर्जना, क्रक्रच, विदारण, त्रपुपान, कुंभीपाक पाचन, कदर्थनादिके विराधना कीधी हुवै इणभव परभव जातां(जाणतां अजाणतां) ते मिच्छा मि दक्कड॥१०॥
SR No.007792
Book TitleShrutdeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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