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श्रुतदीप-१
पांचमो आश्रव परिग्रह राख्यौ हुवै। ते किम ? ते कहै छै- चवदै उपगरण* कहया छै तेहथी अधिका राख्या हुवै अथवा पाछले भव अथवा गृहस्थावास वसतां धन्य-धान्य-क्षेत्र-वास्तु-रूप्य-सुवर्ण-कूप्य-द्विपद-चतुःपदादिक नवविध परिग्रह अपरमित राख्या हुवै ते ऊपर घणी मूर्छा कीधी। इणभव परभव जाणतां अजाणतां मिच्छा मि दुक्कडं॥५॥
वली क्रोध ६ मान ७ माया ८ लोभ ९ घणा कीधा हुवै। वली राग घणौ कीधौ हुवै ते राग त्रिहुं भेदें। ते किम ? स्त्रीने पुरष उपर राग, (स्त्री ने स्त्री उपर राग, ) पुरषने स्त्री उपर राग, पुरषने पुरष ऊपर राग ते कामराग १ कुटुंब परिवार ऊपर राग ते सनेहराग २ आपणे मति ऊपर कदाग्रह ते दृष्टिराग ३।१०
इम द्वेषना पिण त्रिण भेद ११॥ वले लोकासु वेढवाड कीधा हुवै १२। वले लोकांने कूडा कलंक दीधा हुवै १३। वले छता अछता दूषण प्रकासनें पारकी निंदा कीधी हुवै १४। वली दुःख पामीने आकुलव्याकुलता कर अरइ वेई हुवै अनै सुख पामीने रइ वेई हुवै १५। वली पैशून्य कीधौ हुवै, राजा हजूर चाडी खाधी हुवै, केहनै दंडाया मुंडाया हुवै १६। वली माया सहित मृषावाद बोल्यौ हुवै अथवा थापणि मोसो कीधो हुवै १७।
वली महामाई, चामुंडा, चौसठी, नगरकोटी, गौत्रदेवी प्रमुख: वली यक्ष, गोगा, क्षेत्रपाल, विनायक, पश्चिमाधीश, हरिहर प्रमुख कुदेवने देव मान्या हुवै। वली जोगी, सन्यासी, कडी, कापडी, तापस, दरवेस, शेष मुल्ला, मुंडिया, सोफी, आचारभ्रष्ट पासत्था ओसन्ना प्रमुख कुगुरु ने गुरुबु मान्या हुवै। वली मिथ्यात्वी प्ररूप्यो हिंसारूप अधर्म ते धर्मबुद्धै मान्यौ हुवै १८ एवं अढारै पापस्थान यतीपणैमै अथवा ग्रहस्थपणामै सेव्या हुवै ते इणभव परभव जाणतां अजाणतां मिच्छा मि दुक्कडं २।।
हिवै चौरासी लाख जीवाजोनि कहै छै ते खामज्यौ। सात लाख पृथवीकाय तेहना ए भेद- स्फटिक, मणि, रत्न, प्रवालि, हिंगुल, हरिताल, मणिसाल, पारो, सुरमौ, सोनो, रूपौ, तांबो, लोह, कथीर, जसद, सीसो, साते धात, गेरु, खडीवांनी, अरणेटो, पलेवा, अभ्रक, तुरी, वस्त्र रंगणरी माटी, ऊखरखेत्ररी माटी, पाषाण, खर पृथवी प्रमुख भेद। एह पृथवीनो खर प्रमुखनो बावीस हजार वरस उत्कृष्टो आउखो, आंगुलरो असंख्यातमो भाग देहमान, शणिना फल जे पृथवीना खंडमाहे जे जीव छै ते जीव पारेवा जेहवी जे काया करै तो जंबद्वीपमाहै समावै नहीं। ते पृथवीकाय रूपैं रसैं गंधै फरसें करी सातलाख जोनि जाणवी। ते पृथवीकायना जीवाने जाणतां अजाणतां आरंभादिकै करी विराधना कीधी हवै इणभव परभव जातां(जाणतां अजाणतां) ते मिच्छा मि दुक्कड॥१॥
हिवै अप्काय कहै छ। ते अप्कायना अनेक भेद। ते किम ? आकासनो पाणी, धरतींनो पाणी, ओस, हिम, करहा, त्रेह, धुंहर, घनोदधि प्रमुख। एह अप्कायनो सात हजार वरसरो उत्कृष्टो आउखो, आंगुलरे असंख्यातमें भाग देहमान। एक पाणीरा बिंदु में असंख्याता जीव सरसुं जेहवी काया करै तो जंबूद्वीप माहे मावै नहीं। ते अप्काय जीवनी विराधना कीधी हुवै इणभव परभव जातां(जाणतां अजाणतां) ते मिच्छा मि दुक्कडं॥२॥
हिवै अग्निकायरा भेद कहै छै- अग्नि, अंगारा, मुम्मुर, झाल, भोभर, अंगीठी, कोडु, दीवी, चराक रोहि में अग्नि लगावै चकमक, विजली प्रमुख। एह अग्निकाय चिणोठी जित [२ब] नी मांहे असंख्याता जीव ते खस-खस जेवडी काया करै तो जंबूद्वीपमाहे नहीं मावै। इणारी सात लाख योनि, तीन अहोरात्र उत्कृष्ट आउखो। अग्निकाय आरंभादिकै करी विराधना कीधी हुवै इणभव परभव जातां ते मिच्छा मि दक्कड॥३॥