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यतिअंतिमआराधना
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कहीजै १४। सामान्य श्रेणि समुदाई भक्ति छै ते एक साधुने यै ते अनिसृष्ट कहीजै १५। पोतारै अर्थे आधण दीधो छै अनें साधु निमित्तें पांशुली चावल प्रमुख अधिका ऊ(ओ)रै ते आहार अध्यवपूरक कहीजै १६। ए सोलै पिंडोद्गम दोष कहीजै।
हिवै सोलै उत्पादना दोष कहै छै-गृहस्थारा छोकराने रमायकै साधु आहार लै ते धात्रीपिंड दोष १। दूतनी परै ग्रामग्रामना देशदेशना समाचार कहीनै आहार ले ते दूतीपिंड कहीजै २। निमित्त प्रकासने आहार ल्यै ते निमित्त पिंड कहीजै ३। आपणी जात गोत प्रकासनै आहार ल्यै ते आजीवकापिंड कहीजै ४। दातारनी जेहनै विषै भक्ति छै तेहनी प्रसंशा करीने आहार ल्यै ते वणीमगपिंड कहीजै ५। गृहस्थनै उषध, भेषज, चिकित्सा कर्म करीनै आहार ल्यै ते चिकित्सादोष पिंड ६। क्रोध करी आहार ल्यै ते क्रोधपिंड ७। मान अभिमान करी आहार ल्यै ते मानपिंड ८। माया केलवीने आहार ल्यै ते मायापिंड ९। लोभै करी आहार ल्यै ते लोभपिंड १०। पूर्व संस्तवना करी ल्यै ते पूर्व संस्तवदोष कहीजै ११। पछै संस्तवना करी ल्यै ते पुच्छा संस्तवपिंड कहीजै १२। विद्या प्रजीनै आहार ल्यै ते विद्यापिंड १३। मंत्र प्रंजुजीने आहार ल्ये ते मंत्रपिंड १४। चूर्ण देइनै आहार ल्यै ते चूर्णपिंड १५। गर्भ साडी-पाडी आहार ल्यै ते मूल कर्मपिंड १६। ए सोलह उत्पादना दोष एवं ३२।
दश वली एषणा दोष आधाकर्मादि दषण करी संकित आहार आधाकर्मादिक दषण करी म्रक्षत आहार । सचित्त उपर निक्षप्ति मुंक्यौ आहार ३। फासू आहार ऊपर सचित्त मुंक्यौ ते पिहत ४। सचित्त पृथवीयादिकने विषय संहरी दीघो ते संहृत ५।
७ब] वृद्ध अयोग्यदायक तिण दीघो आहार ६। सचित्त मिश्र आहार ७। सम्यक अपरणत आहार ८। वसादि लिप्त आहार ९। छर्दित परशाट आहार १०। एवं ४२।।
पांच मांडलना दषण-क्षीर, खांड, घृत जुदा विहर्या जीमतां भेला करी जीम्या ते संयोजना । बत्तेस कवलांथी अधिको जीमै ते अप्रमाण २। आहारनै विषये गृद्ध थको जीमै ते अंगारदोष ३। अंतप्रांत अनिष्ट आहार जीमतो द्वेष आंणे ते धूमदोष ४। वेदनादिक छर्दि कारण विना आहार ल्यै ते अकारण दोष ५। एवं सेंतालीस दोषमाहिलो जे कोइ दोषण लागो हवै इणभव परभव जातां ते मिच्छा मि दुक्कडं। __वली सज्जातरनें घरै विहर्यो हुवै। अग्रपिंड लीधो हुवै। गृहस्थनै भाजनै आहार कीधो हुवै। गृहस्थनै सखर पंचामृत आहार जीमतां देखीनें वांछा कीधी हुवै। एकै पातरै सगलां घरांनी एकठी भिक्षा अरस विरस विहरी देखीनै दुगंछा कीधी हुवै। आपणो विहर्यो आहार पासत्थादिक पांचनै अथवा अन्यदर्शनीनै अथवा गहस्थनै दीधो हवै। अंघोल कीधो हवै। दाढी मंछ माथैरा काबरा केस कतराया हुवै, मुंडाया हुवै। साबुसु लुगडा धोया हुवै।[जाणतां अजाणतां] इणभव परभव जातां (जाणतां अजाणतां) ते मिच्छा मि दुक्कडं।
वली ग्यानरा आठ अतीचार लगाया हवै। ते किम ? कालवेलायें सिद्धांत भण्यो नहीं हवै अथवा अकालै सिद्धांत भण्यो हुवै १। भणावणहाररो विनय न कीधो हुवै २। भणावणहारने बहुमान अंतरंग प्रीत नहीं धरी हुवै ३। योग तप उपधान विना सिद्धांत वांच्या हुवै ४। विद्यागुरु ओलव्यौ हुवै ५। सूत्र ६ अर्थ ७ सूत्रार्थ ८ बेहुं खोटा भण्या कहया हुवै। भणतां गुणतां सूत्र अर्थ लेतां देतां किणही- अंतराय कीधो हुवै। छती परत भणवा लिखवा न दीधी हुवै। ज्ञानद्रव्य खाधो हुवै। पुस्तक प्रमुख वेच्या हुवै। सूक्ष्म अर्थ सरदह्या न हुवै। इत्यादि प्रकार करी ज्ञान विराधना (जाणतां अजाणतां) इणभव परभव जातां (जाणतां अजाणतां) ते मिच्छा मि दुक्कडं॥१॥
हिवै दर्शनना आठ अतिचार ते किम ? देवगुरु धर्मनें विषै संका कीधी हुवै १। अन्य अन्य दर्शनो ऊपर अभलाषा वांछा कीधी हुवै २। साधु साध्वीनी दुगंछा कीधी हुवै ३। सर्व देव, सर्व गुरु, सर्व धर्म सरीखा मान्या हुवै ४। साधु-साध्वी-श्रावकश्राविका गुणवंत चतुर्विध श्री संघनी प्रसंसा न कीधी हुवै ५। सीदाता साधर्मी साहमीनें द्रव्यत भावत स्थिरता न कीधी हुवै ६। साधर्मिक-साधुनी भक्तवत्सलता कीधी न हुवै ७। श्री जिनशासण तणी प्रभावना उद्दीपना न कीधी हुवै ८। इत्यादिक प्रकार करी दर्शननी विराधना कीधी हवै इणभव परभव जातां(जाणतां अजाणतां) ते मिच्छा मि दक्कड॥२॥