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आत्मोपदेशमाला-प्रकरणम्
(अर्थ) पेट में तथा बवासीर में पैदा होनेवाले कीडे किमि), शंख, जलौका, चंदनक-अक्ष जिसके निर्जीव शरीर को साध लोग स्थापनाचार्य में रखते हैं(चंदन) आदि दो इंद्रियों वाले जीव हैं, खटमल, नँ, दीमक(उद्देहिका), ये प्रमुख तीन इंन्द्रियों वाले जीव हैं।
चउरिंदिया य मच्छिय-विच्छुय-कंसारियाइणो एसिं।
देहं बारसजोयण, तिगाउयं जोयणं च कमा॥५६॥ (अर्थ) मधुमक्खी, बिच्छु, कंसारिका(रात को आवाज करती है) आदि चार इंन्द्रियवाले जीव हैं, इनका देह क्रम से बारह योजन, तीन गव्युत और एक योजन प्रमाणवाला होता है।
__ अच्चंतदक्खियाण वि, एसिं विगलाण बारवरिसाइं।
अउणावन्नं दिवसा, छम्मासा आऊयं कमसो॥५७॥ (अर्थ) अत्यन्त दुःखित ऐसे इन विकलेंद्रिय जीवों का क्रमसे बारह वर्ष, उनचास दिन और छह मास आयुष्य होता है।
तिसु एसु संखकालं, जोणी(णि)लक्खे दुवे वे भमिओ(उं)।
पंचिंदिजाइउदए, जाओ सि पणिंदिओ तिरियं॥५८॥ (अर्थ) तूं इन तीन दो दो लाख योनि में संख्या काल तक भ्रमण करके पंचेन्द्रिय जाति नाम कर्म के उदय से पंचेन्द्रिय वाला तिर्यक् उत्पन्न हुआ।
ते पुण तिविहा जल-थल-खयरा पढमाइ मच्छ-मगराई।
पसु-उर-भुयपरिसप्पा गो-अहि-नउलाइणो बीया॥५९॥ (अर्थ) वे फिर से तीन प्रकार के हैं- जलचर, स्थलचर, खेचर। प्रथम(जलचर) मछली, मकर आदि और द्वितीय(स्थलचर) पशु = गाय, उरपरिसर्प= साप, भुजपरिसर्प = नेवला आदि हैं।
तईया हंसाईया संमुच्छिमगब्भया दहा सव्वे।
गब्भयउरगा उभए वि जलयरा जोयणसहस्सं॥६०॥ (अर्थ) तृतीय(खेचर) हंस आदि सब पक्षी दोन प्रकार के हैं सम्मूर्च्छिम(स्त्री और पुरुष के समागम के बिना उत्पन्न होने वाले) और गर्भज। गर्भज उरपरिसर्प और जलचर दोनों उत्कृष्ट से हजार योजन प्रमाणवाले होते हैं।
खयरदुगधणुयपुहत्तं, छक्कोसपसुभुयगगाउयपुहत्तं।
मुच्छिमभुयउरगपसू, धणुजोयणगाउयपुअहत्त॥६१॥ (अर्थ) आकाश में संचार करनेवाले जीव दो धनुष पृथक्त्व, पशु छह कोस, भुजपरिसर्प गव्यूत पृथक्त्व, सम्मूर्च्छिम भुजपरिसर्प धनुष पृथक्त्व, सम्मूर्छिम उरपरिसर्प योजन पृथक्त्व, सम्मूर्छिम पशु गव्यूत पृथक्त्व उत्कृष्ट प्रमाणवाले होते हैं।
___ आउं च पुव्वकोडी, जलयरद्गगब्भभुयगउरगाणं।
गब्भयपसुपलियतियं, पक्खिसु पलियाअसंखंसो॥६२॥ (अर्थ) जलचर, गर्भज-भुजपरिसर्प, उरपरिसर्प जीवों की उत्कृष्ट आयु एक करोड पूर्व है, गर्भज पशुओं की उत्कृष्ट आयु तीन पल्योपम(और) पक्षियों की आयु पल्योपम के असंख्यातवे भाग जितनी है।