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________________ ॥रत्नाकर स्तवन॥ ॥ॐ नमः॥ रत्नाकरस्तवनं लिख्यते। लक्ष्मी शिव कल्याणनी रे लोल, तस मंगल केलिनो गेह रे जिनेश्वर। नरपति सुरपति पद नमे रे लोल, अतिशय ज्ञान अछेह रे जिनेश्वर॥१॥ चिरं जय ज्ञान कलानिधि रे लोल। (ए आंकणी) त्रिजगजन आधार छो रे लोल, जय करुणा अवतार रे जिनेश्वर। वारंता अति दोहिला रे लोल, जे संसार विकार रे जिनेश्वर॥२॥ चि. कुसल वैद्य प्रभु तेहना रे लोल, तुमे छो टालणहार रे जिनेश्वर। ते कारण तुम आगले रे लोल, अरज करुं सिरदार रे जिनेश्वर॥३॥ चि० वीतराग अवधारीए रे लोल, विज्ञ अतुल जिनराज रे जिनेश्वर। मुखभावे जे कहुरे लोल, वितीक किंचित आज रे जिनेश्वर॥४॥ चि० सिसुलीला भावे भर्या रे लोल, बालक जेम अव्यक्त रे जिनेश्वर। लज्जा विकल्प न ते करे रे लोल, केतां अनुचित कृत्य रे जिनेश्वर॥५॥ चि. मावित्र आगल तेणि परे रे लोल, हीन आश्रय मन रीत रे जिनेश्वर। जेम जेम वरते तेम कहुं रे लोल, मन संताप सहीत रे जिनेश्वर॥६॥ चि० अभय सुपात्र में नवि दीयो रे लोल, दान जे दुरगति पील रे जिनेश्वर। मन सुद्धे नवि पालीयो रे लोल, सदगति दायक शील रे जिनेश्वर॥७॥ चि. करमहारण द्वादश विधे रे लोल, तप्यो न तप निसंस रे जिनेश्वर। भवभयहरणी भावना रे लोल, सुभ मन भावि न अंश रे जिनेश्वर।।८।। चि. पुन्य संबल में नवि लीयो रे लोल, शी गति थास्ये देवरे जिनेश्वर। आभव निष्फल मुज गयो रे लोल, मिटी अनादिनी टेव रे जिनेश्वर॥९॥ (ढाल २ जी) सुणो वीर कहुं सिर नामी, सासनपति अंतर जामी। प्रभु क्रोध अगनसे बलीयो, मद लोभ महोरग नडीयो॥१॥ सु० गल्यो अजगर अभिमांने ज्ञानी, बांध्यो माया जाले तांणी। गइ ईनवै वस सुध मेरी, केसे भक्ति करुं प्रभु तेरी॥२॥ सु.
SR No.007792
Book TitleShrutdeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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